अक़्स

मोहब्बत के ख़याल को जब भी दिल में उतारा है।
मेने हवाओं के दरिया पर तेरा अक़्स उभारा है।

वो पहले ज़ख्म  देता है फिर मरहम भी लगाता है,

पता तो चले वो कोई अपना है या दुश्मन हमारा है।

गर उतार चढ़ाव न होते तो बड़ी आसान हो जाती,
ज़िन्दगी को ज़िन्दगी के लिए मुश्किलों का सहारा है।

तूफ़ां से घिरी कश्ती को यही तसल्ली डूबने नहीं देती,
थोड़ी दूर ही सही लेकिन बड़ा दिलकश किनारा है।

कोई सुरज के घमंड से ये जाकर तो कह दो,
इधर थोड़ी गर्दिश में ही सही लेकिन है तो सितारा है।

तू खुद से कितने भी बहाने बना ले दूर जाना मुश्किल है,
कभी हाथों की लकीरों को तो देख इसमें नाम हमारा है।

ये इस आईने का कोई मज़ाक है या कोई फरेब है इसका,
में तो देखता हूँ ख़ुद को इसमें फिर क्यों अक़्स तुम्हारा है।

 

Bolnatohai

Bolnatohai

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