आखिर यह क्या हुआ है यह कैसी वीरानगी सी है
क्यों यह खूबसूरत शहर मुझे वीरान सा लगता है
कहने को तो बड़ी भीड़ भाड़ है सारी रौनक भी हैं
फिर भी क्यों हर गली कूंचा सुनसान सा लगता है
लज़्ज़तों में डूबा है ज़रूरतों से ज़्यादा ख़्वाहिशें हैं
शायद इसी वजह से हर शख्स परेशान सा लगता है
वह शख्स जालिम मशहूर है ज़ुल्म भी प्यार से करता है
लिबास तो अच्छा है देखने में तो इंसान सा लगता है
मुझे तो यह कद यह शख्सियतें भी बड़ी छोटी सी लगती हैं
हो जिसमें ज़रा सी हया हो मुझे वो आसमान सा लगता है
जब चलना शुरू किया तो कंकड़ पत्थर भी मुश्किल थे
अब तो सामने पहाड़ भी बड़ा आसान सा लगता है
दिल से जरा तंगदस्ती को मैंने अपनी दूर क्या किया
जमीन का हर ज़र्रा मुझे मेरे सहसवान सा लगता है
✍️ अनवर खान “इंक़लाब”