अभी एक पुरानी खबर पर नज़र पड़ी जिसको भारतीय मीडिया द्वारा ब्रेकिंग न्यूज़ बनाया जा रहा था कि देश मे आयात किये जा रहे राफेल विमान को सबसे पहले एक मुस्लिम पायलट ने उड़ाया। भारतीय मीडिया ने इस बात को ज़ोर शोर से उठाया है नहीं तो किसी आम भारतीय को क्या पता कौन से विमान का पायलट कौन है और कौन से विमान को फ्रांस से यहां कौन लेकर आया? उसको आने वाले विमान से भी कोई अधिक मतलब नहीं है ( विपक्ष द्वारा राफेल घोटाले का नाम लेकर मुद्दा बना दिया गया तो राफेल विमान सुर्खियों में है ) तो उड़ा कौन रहा था इससे क्या मतलब होगा उसको चिंता है तो बस अपना जीवन शांति से गुज़ारने की।
सेना के किसी पायलट का धार्मिक एंगल इतना आवश्यक क्यों है?
अब मूल प्रश्न पर आते हैं कि मीडिया ने क्यों किया या यूं कहें कि उसको ये क्यों करना पड़ा? क्या उसका मुसलमानों के प्रति कोई मोह है? उनके मुसलमान एंगल के कारण बढ़ती TRP या उनके किसी मालिक का आदेश इसके पीछे कुछ भी कारण हो सकते हैं। लेकिन मीडिया के साथ साथ अधिकतर मुस्लिम युवा भी सोशल मीडिया पर इस खबर को बार बार शेयर कर रहे हैं। अब मज़हबी कट्टरता इस हद तक बढ़ रही है कि हर कोई इसमें गोते लगा रहा है और डूबता भी जा रहा है, उसको ये भी नहीं पता की ये कट्टरता की जो झील उसे दिखाई दे रही है वो वास्तव में एक दलदल है जिसमे वो धंसता ही जा रहा है।
ये देश के पायलट हैं सेना का विमान अगर ये नहीं उड़ाएंगे तो कौन उड़ाएगा? इनकी जगह कोई दूसरा भी हो सकता था कोई रामप्रकाश हो सकता था कोई मनप्रीत सिंह या फिर कोई जोसेफ भी हो सकता था उससे फर्क क्या पड़ता?
जिन भारतीय सैनिकों ने मातृभूमि की रक्षा की खातिर आर्मी जॉइन की है, जिनके जीवन का केवल एक ही लक्ष्य है भारत माता की सेवा करना। हम क्यों उन्हें जाति और धर्मों में बांट रहे हैं? ये अधिकार हमे किसने दिया है कि हम इन सपूतों को मज़हबों, धर्मों में बांटें?
भारतीय मीडिया का अंतरराष्ट्रीय पटल पर गिरता हुआ स्तर
भारतीय मीडिया ने अपने सम्मानित पेशे को कब का नीलाम कर दिया है और उसको एक सम्मानित कार्य से अपना धंधा बना दिया है। ये बात अधिकतर लोगों को पता है कि भारतीय मीडिया के अधिकतर लोगों ने अपनी अंतरात्मा का सौदा कर दिया है, उनके मालिकों और एंकरों ने पैसे ही इस बात के लिए खाये हैं कि देश को बांट कर ही दम लेंगे और किसी हद तक वो कामयाब भी हो चुके हैं। अंतरराष्ट्रीय पटल पर भारतीय मीडिया की गिरती साख इस बात का जीता जागता उदाहरण है। कम से कम मेरा तो यही मानना है एक नागरिक के तौर पर हम असफल हो चुके हैं। भारतीय मेनस्ट्रीम मीडिया ने देश को बांटने की अपनी जंग लगभग जीत भी ली है, इसीलिए इस प्रकार की न्यूज़ चलती हैं।
इस बात को मुसलमान होने की वजह से ज़्यादा हवा दी जा रही है और कई मुस्लिम युवा भी इसको लगातार शेयर कर रहे हैं मेरी उनसे विनती है कि ये गलत है फिर उन अंधभक्तों में और तुममें क्या फर्क रह जायेगा जो हर बात पर हिन्दू मुसलमान करते हैं। एक सैनिक को इस बात से कितनी शर्मिंदगी और गुस्सा होगा कि अपनी मातृभूमि के प्रति प्रेम और ईमानदारी को भी मज़हबी रूप दिया जा रहा है। अगर हम सैनिक बनकर देश सेवा नहीं कर रहे हैं तो कम से कम सैनिकों को मज़हबों में न बांटकर उनका सम्मान तो कर ही सकते हैं।
आज कोरोना से अधिक चिंता लोगों को मंदिर और मस्जिदों की है, भारत और तुर्की इसका उदाहरण हैं एक बार फिर से देश में कोरोना मरीजों के बढ़ते आंकड़े कुछ और ही बयाँ कर रहे हैं। अधिकतर युवा और अब कुछ प्रौढ़ भी उसमे शामिल है जो पूर्ण रूप से धार्मिक कट्टरता के ग़ुलाम हो चुके है जिन्हें धर्म से आगे न कुछ दिखाई देता है ना सुनाई देता है।
आज पूरे संसार में ये जो धार्मिक उन्माद छाया हुआ है दुनिया का कोई देश इससे अछूता नहीं है लेकिन कुछ देश ऐसे हैं जहां काबू करने और इसे रोकने के बजाय इसको केवल बढ़ाया जा रहा है और ये सब सत्ता की लालसा में हो रहा है इंसान पर राज करने की प्रवृत्ति से इंसान को ही नष्ट किया जा रहा है पूरी दुनिया जल्दी इसके परिणाम भी देखेगी और लोग अपने ही हाथों से स्वयं को तबाह कर लेंगे।
एक सुंदर देश के नागरिक के तौर पर हम कुरूप होते जा रहे हैं, हर बात में कहीं न कहीं से हम लोग धार्मिक एंगल ढूंढ ही लेते हैं और इसके आज हज़ारों उदाहरण हैं, जहां अनावश्यक रूप धर्म को जोड़ दिया गया। हमने देखा कि एक दिमागी बीमार व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति को कुल्हाड़ी से काटकर आग लगा दी और कैमरे पर आकर उसको धर्म से जोड़ दिया कि ये हमारे धर्म की युवती को फंसा रहा था ।
अचानक से उसको कुछ उसी की मानसिकता के लोगों ने हीरो बना दिया बाद में पता लगा कि वो खुद उस लड़की के पीछे था जिसे कैमरे पर बहन बता रहा था उसको स्वयं की भड़ास को धर्म से जोड़ना और सहानुभूति बटोरना सबसे आसान लगा, नहीं तो ऐसे दरिंदे से किसे सहानुभूति हो सकती है और दुर्भाग्यवश वो अपने नापाक इरादों में सफल भी हुआ उसके समर्थन में रैलियां निकलीं कुछ उसी की भांति बीमार मानसिकता के लोगों ने न्यायालय पर हमला कर दिया और जहां तिरंगा लहराना चाहिए था वहां धार्मिक झंडा लगा दिया और हज़ारों लाखों उस जैसे लोगों ने उसका समर्थन भी किया।
आज आवश्यकता इस बात पर मंथन करने की है कि कही ऐसा तो नहीं कि जाने अनजाने में हम लोग भी उसका शिकार हो रहे हैं और हर बात में धार्मिक एंगल ढूंढते हों अगर ऐसा है तो आत्मचिंतन करने की आवश्यकता है और देश को सर्वोपरि रखने की आवश्यकता है और इंसान में धर्म के बजाय धर्म मे इंसान को ढूंढने की आवश्यकता है। कभी कभी सोचकर डर लगता है कि कहीं मेरे जैसे सर्वधर्म समभाव वाले विचार रखने वाले लोग अपने विचारों के साथ अकेले ही खड़े न रह जाएं।