भारत में कोरोना की दूसरी लहर अपने भयावह रूप में दोबारा सामने खड़ी है और प्रतिदिन कोरोना पॉजिटिव मरीजों की संख्या लाखों में पहुंच गई है 2020 में जो संख्या 500 और 1000 थी आज वही संख्या पौने दो लाख प्रतिदिन तक पहुंच गई है और दिन प्रतिदिन इस संख्या में इज़ाफ़ा हो रहा है और मृत्यु दर में भी बढ़ोतरी हुई है प्रतिदिन कोरोना से होने वाली मौतों के आंकड़े भी गंभीर हैं और बेहद चिंताजनक हैं।
सरकारी आंकड़ें कुछ और हैं और वास्तविकता कुछ और है एक न्यूज सोर्स के अनुसार केवल लखनऊ में ही सरकारी आंकड़ों में 1 अप्रैल से 8 अप्रैल के बीच 54 मौतों का आंकड़ा है वहीं उसी न्यूज़ सोर्स के मुताबिक लखनऊ के केवल 2 शमशान घाटों में ही ये आंकड़ा प्रतिदिन लगभग 50 से 60 है ये भी केवल एक धर्म का आंकड़ा है मृतकों के रिश्तेदारों के मुताबिक उनको अंत्येष्टि के दाह संस्कार के लिए 5 से 10 घंटों तक प्रतीक्षा करनी पड़ रही है और मृतकों की पहचान तक नहीं हो पा रही है। भोपाल में एक मुस्लिम महिला का शव हिन्दू महिला के शव से बदल गया और उसका दाह संस्कार कर दिया गया इससे पता चलता है कि मौतों के आंकड़ें शायद कुछ और हों?
वहीं दूसरी ओर राजनीति और धार्मिक कट्टरता ने महामारी का भी मख़ौल उड़ाकर रख दिया है महामारी के समय में भी राज्यों पर अपनी सत्ता काबिज़ करने की भूख और धार्मिक व मज़हबी कट्टरता को महामारी पर दी गयी वरीयता ने इसमे आग में घी का काम किया है। जिस समय आवश्यकता कोरोना से सावधानी बरतने की है हमारे ज़िम्मेदार राजनेताओं को केवल राज्यों को हथियाने की और सरकारें बनाने की जल्दी है शायद बहुत अधिक जनसंख्या शायद उन्हें ये आभास कराती है कि कुछ हज़ार या लाख मर भी जाएं तो कोई अंतर नहीं आएगा। वोटरों की और उससे भी अधिक मूर्खों की कोई कमी नहीं है। जो राजनीति और उसमें धर्म के तड़के के कारण आपस मे लड़ने झगड़ने से लेकर मरने मारने तक को हमेशा तैयार रहते हैं वो इंसान से अधिक किसी चुनावी पार्टी के धर्मांध कार्यकर्ता अधिक हैं। वेसे मरने मारने वाले और लड़ने झगड़ने वाले हैं दोनो इंसान ही। बंगाल में आये दिन भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की हो रही हत्याएं इसका सजीव उदाहरण हैं।
दूसरी और उत्तराखंड राज्य में कुम्भ का आयोजन किया जा रहा है जहां लाखों श्रद्धालु गंगा नदी में शाही स्नान करने के लिए एकत्रित हुए हैं और तो और वहां के मुख्यमंत्री ने तो लोगों की भीड़ को आमंत्रित किया और बयान दिया कि धर्म कोरोना पर भारी पड़ेगा और बेचारे खुद पॉजिटिव हो गए। अब क्योंकि वो मुख्यमंत्री हैं तो उनको तो सब कुछ वीआईपी मिल जाएगा। बेड, अस्पताल से लेकर इलाज भी। लेकिन उन लोगों को क्या मिलेगा जो उनकी मूर्खता पूर्ण बातों में आकर उनके कहे अनुसार धर्म को कोरोना से लड़ा बैठे होंगे। इलाज तो बहुत दूर की बात है एक न्यूज एजेंसी के अनुसार कुछ जगहों पर एक आम इंसान को अंतिम संस्कार के लिए जगह ही मिल जाये तो बड़ी बात है। उसी न्यूज़ एजेंसी के अनुसार कुछ स्थानों पर शवों के अंतिम संस्कार के लिए टोकन बांट दिए गए।
वहीं दूसरी मुस्लिमों का पवित्र रमज़ान माह भी 14 अप्रेल यानी आज से शुरू हो गया है इस माह में मस्जिदें भी भरी हुई चलती हैं। 2020 में तब्लीगी जमात के नाम पर मस्जिदों को बन्द कर दिया गया था। रमज़ान माह में मुस्लिमों की संख्या मस्जिदों में काफी अधिक बढ़ जाती है वहीं दूसरी ओर नवदुर्गे भी आरंभ हो गए हैं। उत्तर प्रदेश में गेंद जिलाधिकारी के पाले में डाल दी गयी है। वो अपने विवेक से धार्मिक स्थलों में 5 लोगों से अधिक लोगों को एक साथ जाने से रोक सकते हैं। कोरोना की दूसरी लहर और उसके भयंकर रूप के चलते यूपी में धार्मिक स्थानों पर एक साथ 5 लोगों को जाने का आदेश हो सकता है इसको लेकर जनता में रोष अवश्य है उसका कारण मंदिरों व मस्जिदों में जाने से रोकना नहीं है उसका कारण है कि इसी महामारी में देश के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, विपक्ष के राहुल गांधी व राज्यों के सभी प्रमुख दलों के शीर्ष नेता कुछ राज्यों में होने वाले चुनावों में लाखों लोगों की रैलियां कर रहे हैं कुम्भ में लाखों लोगों की भीड़ है और मीडिया उसको “आस्था का सैलाब” और “कोरोना पर आस्था भारी” जैसे शीर्षकों से उसको सुशोभित कर रहा है ये वही मीडिया है जो पिछले साल तब्लीगी जमात के लोगों को “कोरोना बम” “कोरोना जिहाद” “तब्लीगी जिहाद” जैसे शब्द गढ़ रहा था।
संसार मे भारत ही एकमात्र ऐसा देश होगा जो इतने मुश्किल समय मे भी चारों ओर लाखों लोगों की भीड़ इकट्ठी कर रहा होगा। अब इस पर सवाल उठाना और लोगों में रोष का होना स्वाभाविक है और एक प्रश्न यह भी उठता है कि एक सेक्युलर और लोकतंत्र में राजनीति और अलग अलग धर्म के लिए अलग अलग राज्यों में अलग अलग नियम व कानून क्यों है?
हरियाणा के हिसार में स्कूल प्रबंधकों ने स्कूल बंद होने का विरोध किया है उनका कहना है कि हम जेल जा सकते हैं लेकिन स्कूल बंद नहीं करेंगे क्योंकि खाने तक को पैसे नहीं हैं और जब सारे कार्य हो रहे हैं तो स्कूल क्यों बन्द करें लोगों का प्रश्न उठाना स्वाभाविक है कि जब क्रिकेट आईपीएल हो सकता है चुनाव हो सकते हैं रैलियां हो सकती हैं महाकुम्भ हो सकता है तो शिक्षा क्यों नहीं हो सकती। मीडिया को कम से कम एक दो डिबेट इस पर भी करना चाहिए लेकिन अधिकतर लोगों का मानना है कि भारतीय मीडिया अपने अब तक कर सबसे बुरे और निचले दौर से गुज़र रहा है और प्रत्येक दिन नए नए नामों से सुशोभित हो रहा है आये दिन प्रतिष्ठित राष्ट्रीय चैनलों के पत्रकारों को डिबेट के अंदर विपक्ष के नेताओं द्वारा नई नई उपाधियों से नवाजा जा रहा है स्वर्गीय राजीव त्यागी और अमिश देवगन का किस्सा लगभग सबको याद होगा सोशल मीडिया में वीडियो उपलब्ध भी है। कुछ अपवाद चैनल, उनके पत्रकारों और न्यूज़ सोर्सेज़ को छोड़कर सबने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली है।
आशा है जल्दी ये पट्टी खुले और सब साफ नजर आने लगे।