आखिर हम विश्वगुरू बन ही गए!

अक्सर सुनने को मिलता है कि हम विश्वगुरु बन गए हैं या बस बनने ही वाले हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि बस अब कुछ दिनों की बात है, हम पथ पर अग्रसर हैं जल्दी ही हम विश्वगुरु बन जाएंगे, और पूरा संसार हमारे कदमों में होगा। और ऐसा प्रतीत भी क्यों न हो हमारे घर में जो बुद्धू बक्सा रखा है, जिसे हम टीवी कहते हैं वो हमें हर पल यही महसूस करने को कह रहा है।

इसी गुरुघंटाल के चक्कर मे आकर जो कभी हमे विश्वगुरु बना देता है, कभी वो वैक्सीन गुरु बना देता है। वो अलग बात है कि वैक्सीन ही नहीं है आये दिन वही बक्सा ये भी सूचना देता है कि किसी राज्य में वेक्सिनेशन सेंटर बन्द हो गया क्योंकि वैक्सीन की शॉर्टेज है।

वैक्सीन नहीं है लेकिन हम वैक्सीन गुरु बन गए हैं

अक्सर लोगों को मैसेज आ जाता है कि आपके वैक्सीनेशन की दूसरी डोज़ की तारीख आगे बढ़ा दी गयी है। ये देखना हास्यास्पद है कि ये भी समाचार उसी माध्यम से प्राप्त हो रहे हैं जो मुझे वैक्सीन गुरु होने का गौरव महसूस करवा रहा था।

ये तो हुई वैक्सीन गुरु की बात अब आते हैं विश्वगुरु बनने पर ये तो बताया कि हम विश्वगुरु बनने वाले हैं लेकिन सच ये है कि हम वाक़ई विश्वगुरु बन गए हैं।बताता हूं किस क्षेत्र में।

मानवीय मूल्यों की अनदेखी करने में।
संवेदनहीनता में।
लालच में।
कालाबाज़ारी में।
दरिंदगी में।
अफसरों की तानाशाही में।
टूटती हुई व्यवस्था में।
दयनीय चिकित्सकीय सुविधाओं में।
राजनीति के गिरते हुए स्तर में।

कोरोना महामारी ने हमारी अपनी असलियत सामने लाकर रख दी कि हम एक नागरिक के तौर पर कितने संवेदनहीन हो चुके हैं किसी महामारी के समय जब पूरे देश को एक साथ खड़े होने की आवश्यकता होती है और एक दूसरे की मदद की आवश्यकता होती है हम यहां क्या कर रहे थे या क्या हो रहा था वो सबने देखा है।

सांसों के साथ मानवीय मूल्यों की कालाबाज़ारी में विश्वगुरू

केमिस्ट शॉप्स से दवाइयां गायब हो गयीं उनकी ब्लैक में बिक्री शुरू कर दी गयी। एक भांप लेने वाला स्टीमर तक 500₹ का बिका जिसकी कीमत 150₹ होती है। अस्पतालों से बैड गायब कर दिए गए और पैसे देकर नक़ली रोगियों को लिटा दिया गया और जिसका सूटकेस भारी दिखा उसको उपलब्ध करवा दिए गए।हम गिद्ध बनकर पैसे कमाने के लिए लाशों के व्यापार कर रहे थे और ज़िन्दगी बेच रहे थे।

सरकारी अस्पतालों में रोगियों की क्या दशा हुई है उनके परिजनों के वीडियो चीख चीखकर गवाही दे रहे हैं। कहीं मृतक का गुर्दा गायब करने का आरोप लगा कहीं उसकी आंखें गायब करने का।

ऑक्सिजन सिलिंडर 80000 तक मे बिके उनकी रिफलिंग 6000 से लेकर 16000 तक हुई ऐसी खबरें हैं। लोगों ने अपने प्रियजनों को बचाने के लिए अपनी संपत्तियों अपने आभूषणों तक को बेच दिया। अस्पतालों से सिलिंडर गायब हो गए हज़ारों लोग दम घुटने से मर गए और उन्हें जीने के लिये चंद सांसें नहीं मिल सकीं।

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हम वो इंसान हैं जो दरिंदों को बुरा कहते हैं

मरने के बाद एम्बुलेंस वालों ने शव ले जाने के लिए 5 – 5 किलोमीटर के 12 – 12 हज़ार चार्ज किये शमशानों में टोकन बांट दिए गए। चिता की लकड़ियों को महंगा कर दिया गया। चिता जलाने के लिए लोगों को रिश्वत देने के आरोप लगे। लकड़ियों के अभाव में अधजली लाशें भी टीवी पर दिखाई गयीं।

जिन्हें लकड़ियां नहीं मिलीं उनको नदियों में प्रवाहित कर दिया गया बाकियों को वही नदी किनारे गड्ढे खोदकर दबा दिया गया दफनाना शब्द प्रयोग नहीं कर रहा हूँ क्योंकि अगर दफनाया गया होता तो कुत्ते या दूसरे जानवर शवों को ले जा रहे हैं ऐसी खबरें नहीं आतीं। दफनाने की जो प्रक्रिया होती है उसमें कम से कम शवों के साथ ये वीभत्सता नहीं होती है।

देश तड़प रहा हो और लोग लूट रहे हों। ऐसे विश्वगुरू

जो भी शवों के साथ हुआ इसमे हम अवश्य विश्वगुरु बन गए होंगे। बाजार में दुकानदारों ने जो लूट मचाई वो किसी से छिपी नहीं है। अभी कल मेने सरसों का तेल खरीदा तो बाजार में भाव 180₹ किलो सुनकर दंग रह गया।

वो तो एक करीबी दोस्त है उसका भला हो उसने 20₹/किलो की रियायत दे दी ये तो बस एक ही उत्पाद की बात है बाकी सबके सामने है कि महंगाई का क्या हाल है। ये वही है जो कभी डायन हुआ करती थी।

अगर दरिंदगी की बात करें, तो ऐसे कितने देश हैं या किस देश से ऐसी खबरें आती हैं, जहां किसी 5 साल 4 साल 6-7 साल की मासूम बच्ची के साथ दरिंदगी की जाती हो। जिन बच्चों को देखकर बड़े से बड़े कठोर मनुष्य के चेहरे पर मुस्कान आ जाती हो, जिनके केवल मुस्कुराने से जीवन विस्मित हो जाता हो, एक सुकून मन में आ जाता हो वहीं कोई ऐसी भी दरिंदगी कर जाता है कभी कभी ऐसे दरिंदों को बचाने बड़े बड़े नेता भी पहुंच जाते हैं ये भी देखने को मिला है।

महामारी में भी निरंकुश अफसरशाही

अफसर निरतंर निरंकुश हो रहे हैं कोई किसी बारात में जाकर सम्मानित व्यक्तियों को उनके अपनों के सामने लज्जित करता है, बदसुलूकी करता है, हाथ उठाता है, समाज मे उनकी प्रतिष्ठा को एक पल में बर्बाद कर देता है।

कहीं कोई अधिकारी किसी के हाथ से मोबाइल लेकर तोड़ देता है और निकम्मे लोगों को आदेश देता है मारो इसे मारो जैसे वो व्यक्ति कोई मनुष्य न होकर केवल एक वोट में बदल चुका है जिसकी कोई संवेदना नहीं हो सकती जिसके कोई अधिकार नहीं हो सकते।

देश में आखिर महामारी क्या है? कोरोना या राजनीति

जिस समय हमारे देश के नेताओं को महामारी से लड़ना है, उस समय ये सम्मानित और महत्वपूर्ण लोग आपस मे लड़ते रहे, कभी चुनाव के नाम पर, कभी ऑक्सीजन के नाम पर, कभी वैक्सीन के नाम पर। देश की महामारी से लड़ाई को इन नेताओं ने अपनी घटिया राजनीति के चलते निजी लड़ाई बना दिया।

कभी कोई गोबर और गोमूत्र से कोरोना ठीक करने लगा, कभी कोई पापड़ खिलाने पर तुल गया, किसी को वैक्सीन के अंदर पार्टी दिखाई देने लगी और उसने अपनी पार्टी के लोगों को वैक्सीन लेने से ही मना कर दिया। किसी ने उसको किसी विशेष पार्टी की वैक्सीन बता दिया।

कोई एम्बुलेंस छुपाकर उनसे बालू और रेत की ढुलाई करवा रहा था। अगर कोई मदद करने आगे आया भी तो उसको जेल में डाल दिया गया पुलिस भेजकर प्रताड़ित किया गया।
इतना कुछ है लिखने को और इतनी कहानियां हैं कि अगर विस्तृत रूप से लिख दिया जाए तो किताबें लिखी जा सकती हैं और किताबें लिखी भी जाएंगी जिन्होंने ये सब सहा है वो किताबें लिख भी सकते हैं। और विश्वगुरु भी बन सकते हैं।

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Bolnatohai

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