एक नागरिक के तौर पर इतनी फूहड़ता और अमानवीयता कभी महसूस नहीं की, और न ही हो सकती है कि इस देश के नागरिकों की मौत को भी मजाक बना दिया गया है। वो मृतात्माऐं भी इस प्रश्न के साथ विचरण कर रही होंगी, कि कोई तो होगा जो बताएगा, कि आखिर हमारी मौत कैसे हुई?
20 जुलाई को एक खबर पढ़ी हमारी केंद्र सरकार की ओर से देश के स्वास्थ्य राज्य मंत्री भारती प्रवीण पवार ने राज्यसभा में यह बयान दिया, कि कोविड 19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में ऑक्सिजन के अभाव में किसी भी मरीज़ की मौत की खबर नहीं मिली है।
इसमें वो राज्य भी शामिल हैं जो कांग्रेस शासित हैं, जहां भाजपा की सरकारें नहीं हैं। हाई स्कूल के सिलेबस में मुंशी प्रेमचंद जी का एक अध्याय था “नमक का दरोगा”। जिसमें एक पंक्ति थी जो उसी समय मस्तिष्क पर अंकित हो गयी थी और आज के हालातों में कई बार याद आ जाती है, कि “हमाम में सभी नंगे हैं और एक नंगा दूसरे को क्या नंगा करेगा”।
जो लोग केंद्र की भाजपा सरकार को कोसते रहते हैं वो कांग्रेसी भी अपने गिरेबान में ज़रूर एक बार झांक लें, क्योंकि उससे बेहतर कोई आईना नहीं है। बड़ी बड़ी बातें और जुमलों से ये देश पहले ही काफी परेशान है उसपर सरकारों का नागरिकों के प्रति ये क्रूर रवैया आग में घी का ही काम करता है और नागरिक के अंदर गुस्से को केवल हवा ही देता है।
में आप सबसे पूछना चाहता हूं किसी पार्टी का समर्थक या विरोधी नहीं, केवल इस देश का नागरिक बनकर इसका उत्तर दें कि क्या इससे अधिक आमानवीय बयान कोई और हो सकता है?
इससे घटिया बयान कोई दूसरा हो ही नहीं सकता। देश में लाखों नागरिकों की जानें केवल ऑक्सीजन की किल्लत और ध्वस्त हुए मेडिकल ढांचे के कारण चली गयीं। लोगों ने अपने प्रिय जनों को ऑक्सीजन की कमी के कारण अपने सामने तड़पते हुए मरते हुए देखा है। उनके दिल पर आज क्या बीत रही होगी यह केवल वही बता सकते हैं।
देश के कई बड़े अस्पतालों की ओर से ये बयान जारी किए कि हमारे यहां ऑक्सीजन की कमी के कारण कई मरीजों की जान चली गई। देश के कई प्रतिष्ठित डॉक्टर कैमरे पर आकर असहाय और रोते हुए देखे गए और उन्हें यह कहते हुए सुना, कि ऑक्सीजन की बहुत भारी किल्लत है, अगर ऑक्सीजन की पूर्ति नहीं की गई तो उनके अस्पतालों में मरीजों की जाने जाएंगी और बहुत सारे अस्पतालों में ऐसा हुआ भी जहां ऑक्सिजन के कमी के कारण अनेक मरीजों की जानें गयीं।
देश के कई प्रतिष्ठित अस्पतालों में एक-एक दिन में ऑक्सीजन की कमी से कई कई जानें चली गयीं। दिल्ली के सबसे बड़े अस्पतालों में से एक सर गंगाराम अस्पताल में ऑक्सीजन के कमी से एक दिन में 25 लोगों की मौत की खबर आई थी।अस्पताल की ओर से बयान जारी किया गया कि अगर ऑक्सिजन एयरलिफ्ट नहीं की गई तो 60 और मरीजों की जान को खतरा है और हमारे पास केवल 2 घंटे की ऑक्सीजन शेष है।
लोगों ने अपने प्रिय जनों को सांसों के लिए तड़पते हुए देखा और लोग इतने असहाय थे कि उनके लिए चंद सांसे भी मुहैया नहीं करा पाए।
हमने वह भी तस्वीर देखी जब एक ऑटो में मां के कदमों में उसके बेटे की लाश पड़ी हुई थी और वह बेचारी ऑटो में बैठी हुई केवल उसको निहार रही थी।
वह तस्वीर भी देखी जब एक पत्नी सावित्री बन कर अपने पति को अपने मुंह से सांसे देकर उसको यमराज से बचाने का असफल प्रयास कर रही थी।
लोगों को जिस प्रकार से तड़पते और बिलखते देखा है वो तस्वीरें और वीडियो आज भी मस्तिष्क पर अंकित हैं और शायद कभी भुलाई भी नहीं जा सकेंगी।
कोरोना की दूसरी लहर के दौरान एक समाजसेवी के तौर पर कार्य किया डॉक्टर्स का एक ग्रुप तैयार किया और जितना हो सका लोगों की मदद भी की। ऑक्सीजन की कितनी किल्लत थी और ऑक्सीजन के अभाव में कितने लोगों की जानें गयीं खूब देखा और महसूस किया है।
देश के न्यूज़ चैनल और कई अखबार ऑक्सीजन के कमी के कारण हुई मौतों की खबरों को दिन रात दिखा रहे थे अगर इन लोगों की मौत ऑक्सीजन से नहीं हुई थी तो फिर कैसे हुई थी इस प्रश्न का उत्तर भी ये निरंकुश सरकारें ही दे सकती हैं।
एक देश के नागरिक के तौर पर इससे अधिक अमानवीय व्यवहार और क्या हो सकता है कि उसके नागरिक की मौत का भी मजाक बना दिया जाए। जिस देश में हम रहते हैं वहां जीवन से अधिक मृत्यु को सम्मान दिया जाता है।
वही इस कोरोना महामारी के दौरान अव्यवस्थाओं के कारण जो तस्वीर सामने आई है, उसमें तो मौत को भी मरते हुए देखा है। एक मरे हुए व्यक्ति को कई बार मरते देखा है, कभी गंगा में तैरते हुए, कभी जानवरों द्वारा उनको नोचते हुए, कभी कब्रिस्तानों में जगह के लिए तरसते हुए, कभी शमशान में लकड़ियों के लिए बिलखते हुए, कभी अस्पतालों के बाहर एम्बुलेंस से गिरते हुए, कभी साईकल और कंधे पर ढोते हुए।
कम से कम स्वास्थ्य मंत्री ने ये तो माना कि देश में उस समय ऑक्सीजन की मांग बहुत अधिक बढ़ गयी थी और वो इस स्वीकारोक्ति के लिए बधाई के पात्र हैं। में ये तो नहीं जानता कि उनके अपने परिवार या किसी जानने वाले को उस समय ऑक्सिजन की आवश्यकता पड़ी थी अथवा नहीं। या किसी रिश्तेदार को उन्होंने खोया होगा अथवा नहीं। लेकिन वो हैं तो इसी देश के नागरिक शायद कुछ सुना और देखा भी तो उन्होंने भी होगा।
उस समय दिल्ली से लेकर सभी राज्य ऑक्सिजन की किल्लत के लिए केंद्र सरकार को क्यों दोषी ठहरा रहे थे? क्यों बार बार उन मौतों के लिए केंद्र को दोषी ठहरा रहे थे?
केवल केंद्र सरकार और स्वास्थ्य मंत्री की बात हो रही है, लेकिन उन बेहया राज्य सरकारों का क्या जिन्होंने ये आंकड़ें केंद्र को भेजे हैं। इसमें वो राज्य भी हैं जहां भाजपा की नहीं बल्कि कांग्रेस की सरकार है। क्या राहुल गांधी को इस अमानवीयता की ज़िम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए? उनके खुद के मुख्यमंत्री भी बेहयाई पर हैं उनसे भी सवाल करना चाहिए।
सारे सवाल केवल देश के प्रधानमंत्री से ही क्यों? क्या कांग्रेसी मुख्यमंत्री बुज़दिल नहीं हैं जो आंकड़ें तक नहीं दिखा सकते। क्या प्रधानमंत्री की भांति उनसे भी नैतिकता के आधार पर इस्तीफे नहीं मांगने चाहिए।
केवल केंद्र की गलती क्या है? केंद्र वही आंकड़ा दिखायेगा जो राज्य उसको देंगे वो अलग बात है कि मानवता के नाते स्वास्थ्य मंत्री इन आंकड़ों पर प्रश्न चिन्ह लगा सकते थे। वो भी इसी देश के नागरिक हैं भले ही मंत्री पद उन्हें अभी मिला हो किन्तु कोरोना की दूसरी लहर के दौरान देखा और सुना तो उन्होंने भी सब होगा। उनके घर की दीवारें इतनी ऊंची नहीं होंगी कि किसी का करुण क्रन्दन उन तक न पहुंच पाया हो।
हर राज्य में हज़ारों मौतों के आंकड़ें हैं उसके बावजूद सरकारें उन मौतों को मानने से ही इनकार करने लगें इससे अधिक बेहयाई क्या हो सकती है?
लेकिन मानवीयता की उम्मीद कम से कम अब इन नेताओं से बेमानी ही लगती है। एक देश के तौर पर जब ये खबरें बाहर जाती होंगी कि एक विश्वगुरु देश जो दुनिया की लगभग 20% आबादी को अपने में समेटे है और दुनिया मे अपना डंका बजा रहा है वो अपने नागरिकों की मौत के आंकड़ें और कारण तक नहीं बता सकता।
वो आत्माएं भी तड़प रही होंगी और अवश्य ये प्रश्न कर रही होंगी कि कोई हमें भी तो बता दो की आखिर हम मरे कैसे?
शर्मनाक!
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