आतंकवाद और उसका पोषण

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की दहशतगर्दी और अफगानिस्तान में उसके बढ़ते वर्चस्व को लेकर पूरी दुनिया के मीडिया की नज़र इस वक़्त तालिबान और अफगानिस्तान पर है। और होनी भी चाहिए क्योंकि इस समय तालिबान अफ़ग़ानिस्तान के लोकतंत्र को रौंद रहा है।

लेकिन जो काम अमेरिका ने 20 साल में अफ़ग़ानिस्तान में किया या पूरी दुनिया मे गाहे बगाहे करता रहता है क्या वो लोकतंत्र है? या जो फिलिस्तीन में इज़रायल ने किया या हो रहा है वो लोकतंत्र है?

ऐसा क्यों है कि अमरीकी आतंकवाद कभी आतंकवाद नहीं लगता अंग्रेजों के द्वारा किये हुए नरसंहार इस भ्रष्ट मीडिया के गिद्धों को क्यों दिखाई नहीं देते। ब्रिटेन में जब इराक़ में ब्रिटिश आर्मी को वापस बुलाने के लिए प्रदर्शन हुए और टोनी ब्लेयर को हत्यारा, आतंकवादी और खून से सने हाथ वाला बताया गया।

उसके बाद जब सर जॉन चिलकोट कमेटी का गठन करके जांच की गई, तो 16000 पन्नों की उस जांच रिपोर्ट जिसको सर जॉन चिलकोट रिपोर्ट कहा जाता है उसमें ये सच बाहर आया कि सद्दाम हुसैन के पास कभी कोई जैविक और रासायनिक हथियार नहीं थे ये केवल तेल के लिए किया गया नरसंहार था।

बहुत से लोगों को पता नहीं है कि आंकड़ों के अनुसार केवल इराक़ में ही अब तक 10 लाख लोगों को अमेरिका और उसके साथी देशों द्वारा मार दिया गया है। जिसमें महिलाएं, वृद्ध और मासूम बच्चे शामिल हैं।

बुर्के में ढकी महिलाओं को देखने वालों को उनकी लाशें क्यों नहीं दिखाई देतीं?

क्या इस्लाम से रिश्ता होने के कारण उनकी मौत मौत नहीं होती या उनकी जान की कीमत किसी दूसरे धर्म से कम हो जाती है?

अमेरिका ने अपने संसाधनों की भूख के कारण लाखों लोगों की जान ले ली लेकिन उस पर कभी कोई बात नहीं होगी। और ये भी जान लीजिए कि ये 10 लाख मौतें आंकड़ों में है। सच्चाई क्या है ये केवल इराकी ही जानते होंगे या जो जानते हैं वो      वो कभी उस सच को आपके सामने लेकर नहीं आएंगे।

आंकड़े केवल आंकड़े होते हैं उनकी सच्चाई हमने अभी कोरोना काल में देख ही ली होगी कि मृतक कितने थे और आंकड़ों में उनकी संख्या कितनी थी। आज दुनिया को ये पता है कि कोरोना की दूसरी लहर में आंकड़ों के अनुसार हमारे यहां कोई भी मौत ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई थी और ये बयान लोकतंत्र के मंदिर में दिया गया था तो प्रश्न लगाने का तो कोई मतलब ही नहीं होता।

जब तालिबान आतंकवाद करता है तो वो महिलाओं को दबाने और कुचलने वाला हो जाता है। वही काम अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश करते हैं तो वो आतंकवाद क्यों नहीं है? हर ज़ुल्म की बात बराबर होनी चाहिए जिस इस्लाम को हम जानते और मानते हैं उसमें तालिबानियों को तो अल्लाह कभी नहीं बख्शेगा उनको तो नरक मिलेगा ही, लेकिन क्या अमेरिका का गुनाह कम हो जाएगा।

तालिबान के फैलाव को समझने के लिए उसके जन्म को समझना होगा, जो अमेरिकी आतंकवाद और विस्थापन से हुआ है। केवल रूस को बर्बाद करने के लिए अमेरिका ने ही तालिबान को खड़ा किया था ये बात किससे छुपी है?

अफ़ग़ानिस्तान अब धीरे धीरे वापस संभल रहा था और हालात धीरे धीरे सामान्य होने लगे थे एक बार फिर तालिबान के कब्ज़ा होने की कगार पर है और जिस तरह के हालात हैं जल्दी कब्ज़ा हो भी सकता है।

सोवियत रूस के टुकड़े करने में किसकी क्या भूमिका रही सब जानते हैं?

किसने आतंकवादियों को हथियार मुहैया कराए?

सब किताबो में मौजूद है रोनाल्ड रीगन से लेकर डोनाल्ड ट्रम्प तक सबका कच्चा चिट्ठा मौजूद है।सोशल मीडिया पर देखा जाए तो इस्लाम का नाम सामने आते ही सबको मुसलमानों और उनकी मुसलमान औरतों की फिक्र हो जाती है। वो तुरंत उन्हें बुरक़ों से आज़ादी दिलाना चाहते हैं जबकि उनकी बहन अपनी मर्ज़ी के कपड़े तक नहीं पहन सकती।

आज पूरी दुनिया को तालिबान के विरुद्ध एकजुट होने की ज़रूरत है लेकिन वो दरिंदे भी बचाने की बात कर रहे हैं, जो 8 साल की मासूम बच्ची के रेप और उसकी नृशंस हत्या और हत्यारों को डिफेंड कर रहे थे। उसके हत्यारों को बचाने के लिए उसी सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे थे। उनके लिए रैलियां निकाल रहे थे। मस्जिद में मासूम और बेगुनाह लोगों की मौत पर जश्न मना रहे थे।

आज अमेरिका की शक्तिशाली सेना लौटने को मजबूर है उसका कारण अमरीकी लोगों और सैनिकों की बढ़ती नाराज़गी है। अमेरिका ने खाड़ी के कई मुल्कों में अपनी सेना को युद्ध मे झोंक दिया है।

अभी तालिबान के अत्याचारों पर बात करने का समय है, लेकिन उसके साथ CIA और कुछ दूसरे देशों द्वारा अरबों डॉलर खर्च करके इस्लामोफोबिया फैलाने और इस्लाम का डर दिखाकर सबसे अधिक इस्लाम का ही नुकसान करके मुसलमानों का डर दिखाकर मुसलमानों का ही क़त्लेआम करने की भी बात होनी चाहिए।

कैसे इस्लामिक देशों के संसाधनो की लूटपाट की गई। यह भी बात होनी चाहिए कि कैसे सोवियत संघ का वर्चस्व समाप्त करने के लिए कट्टरपंथी मुसलमानों को इकट्ठा किया गया और सोवियत संघ के टुकड़े करवाये गए।

9/11 के बाद अमेरिका द्वारा सैंकड़ों मुस्लिम युवकों को जेल में बंद करने से लेकर महिलाओं और बच्चों के साथ किया गया सुलूक और यातनाएं के किस्से कभी आपतक आ ही नहीं पायेंगे। एक बात जान लीजिए कि तालिबान का आतंकवाद केवल कट्टरवादी मानसिकता ही नहीं है ये उससे भी अधिक राजनीतिक है।

तालिबान के आतंक को समाप्त करना बहुत ज़रूरी है लेकिन-
क्या अमेरिका की इस अतिवादी सोच से संसार सुरक्षित है?

अभी खाड़ी देश हैं कल कोई और होगा और कल कोई और था। अगर विश्वास न हो तो अमेरिका द्वारा चिली में किये गए तख्तापलट को सर्च कर लो या Massacre at the Stadium नाम की डॉक्यूमेंट्री देख लो जो नेटफ्लिक्स पर मौजूद है।

 

Bolnatohai

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