बेटी – Beti

जब भी घर में जाता हूं वह दौड़ के लिपट जाती है
वह मेरी बेटी ही है जिससे मेरी दुनिया जगमगाती है

मुझे खामोश देखकर आकर मेरी गोद में लेट जाती है
मुझे हंसाने के लिए खुद ही टेढ़े मेढ़े मुंह बनाती है

वैसे तो बहुत छोटी है लेकिन कितनी भी भूखी हो
मैं जब आ जाऊं तो खाना मेरे हाथ से ही खाती है

मुझे मेरे लफ्ज़ों से और मेरे अंदाज ए बयां से मोहब्बत है
लेकिन अंदाज़ उसका निराला है जब हर बात पर तोतलाती है

जब भी खिज़ां का दौर आया हो और ख्वाबों के पत्ते टूट जाते हों
वह सिर्फ मेरी बेटी ही है जो मेरी ज़िंदगी में फिर से बहार लाती है

मेरा ख़ुदा भले मुझसे नाराज़ हो लेकिन फिर भी सब अता करता है
शायद मेरी बेटी ही वो नेअमत है जो खुदा से    मेरे लिए नेअमतें मंगवाती है

Bolnatohai

Bolnatohai

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