जातीय व्यवस्था का शिकार गरीब
समाज मे व्याप्त गंदगी और बुराई को देखकर कलम रुक नहीं पाती आज भी कुछ अलग ही कारण है जिस समाज मे हम रह रहे हैं उसकी सच्चाई सबको पता होना ही चाहिए की वो अंदर से कितना खोखला है और उसी खोखलेपन की वजह से कोई गरीब और फुटपाथ पर जूते बेचकर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करने वाला मज़दूर शिकार होता है और हमारा सिस्टम उसकी गरीबी का बलात्कार करता हुआ दिखाई देता है। वो सिस्टम अच्छे से जानता है कि जिस गरीब के साथ वो खेल खेल रहा है उसका खिलाड़ी कोई और है लेकिन उससे खेलना उसके बस का नहीं है तो वो गरीब मज़दूर सबसे आसान निशाना बन जाता है।
धर्म हमारी सोच पर हावी
आज जाति और धर्म हमारी सोच पर इस कदर हावी हो चुका है कि उससे आगे कुछ दिखाई ही नहीं देता न ही हम देखना चाहते हैं हम अगर चाँद को भी देखते हैं तो कोई उसको करवाचौथ के लिए देखता है कोई उसके दो टुकड़े देखना चाहता है हमारी सबकी अलग धार्मिक मान्यताएं हैं और उसमें कुछ बुराई भी नहीं है बुराई वहां है कि आज सब कुछ केवल उसी परिपेक्ष्य में देखा जाने लगा है कोई अगर ऊंची जाति से है फिर वो चाहे किसी भी धर्म से हो वो जब अपनी जाति बताता है तो एक अलग ही गर्व या कहें घमंड उसके चेहरे पर दिखाई देता है और वो सबसे अलग महसूस होता है।
ऊंची जाति और नीची जाति का अंतर
स्वयं को बड़ा और दूसरे को कमतर समझना एक अच्छे इंसान की निशानी तो कतई नहीं हो सकता आप पठान चौधरी सैयद ठाकुर ब्राह्मण तो हो सकते हैं लेकिन एक अच्छे इंसान भी हों इसकी कोई गारंटी नहीं है जबकि एक अच्छा इंसान होना सबसे अधिक ज़रूरी है सोचने वाली बात तो ये है कि जिस धर्म के आधार पर जातियों का निर्माण हुआ वही धर्म कहता है कि आपका अल्लाह या भगवान आपके आमालों से यानी आपके कार्यों से ही आपको स्वर्ग या नर्क में भेजेगा न कि आपकी जातियों के आधार पर जातियों का निर्माण लोगों की पहचान के लिए किया गया और लोगों ने उसको प्रतिष्ठा बना दिया और लोगों का उत्पीड़न शुरू कर दिया।
शिकार होते मशहूर लोग
उदाहरण के तौर पर बताता हूँ एक भारतीय क्रिकेटर हैं रवींद्र जडेजा या कहिये सर रवींद्र जडेजा भारत वर्सेज़ इंग्लैंड के तीसरे टेस्ट मैच अचानक कैमरा उनके पैरों पर गया पैरों जो जूता था उस पर राजपूत लिखा हुआ था जो कैमरे पर आसानी से दिखाई दिया क्या कोई राजपूत FIR के लिए थाने गया या नही वो भी एक विषय है।रवींद्र जडेजा एक भारतीय सेलेब्रिटी हैं अपने समुदाय को इस तरह हाईलाइट करके जडेजा क्या साबित करना चाहते ये कैसा गर्व और घमंड है?
उनका राजपूत होना अधिक मायने रखता है या टीम इंडिया का बैज अधिक मायने रखता है या वो भारतीय ध्वज जो उनके हेलमेट पर दिखाई देता है क्या हर मैच से पूर्व होने वाला वो राष्ट्रगान काफी नहीं है जो विंध्य हिमाचल यमुना गंगा को एक सूत्र में पिरोकर भारत को भाग्य विधाता बनाता है अगर वो किसी और समुदाय से आते तो उनके क्रिकेट खेलने के गुण में कमी या कोई इज़ाफ़ा हो जाता ये रवीन्द्र जडेजा वही हैं जो अपनी शादी में स्टेज पर तलवारबाज़ी करते दिख रहे थे लेकिन वो उस वक़्त अपने परिवार के साथ थे यहां वो टीम इंडिया को रिप्रेज़ेंट नहीं कर रहे थे।
मशहूर लोगों को सबसे पहले आगे आना चाहिए
जो लोग अक्सर आसमान में रहते हैं उन्हें लोग नहीं दिखते भीड़ दिखाई देती है वेसे भी हमारे देश मे क्रिकेटर्स का अलग ही मुकाम है ये लोग अक्सर हवाई जहाजों में ही रहते हैं इतनी ऊपर से जो भीड़ दिखती होगी वो जाति या धर्म की न होकर इनके फैंस की होती है जो शायद सभी जातियों व धर्मों के हैं और इनसे प्यार करते हैं जिन्हें अपना आदर्श मानते हैं लेकिन क्या ये वास्तव में आदर्श बन रहे हैं।
एक ऐसा इंसान जो हजारों लाखों करोड़ों लोगों के सामने हीरो बन सकता है उनका आदर्श बन सकता है वो अपनी जाति-समुदाय पर सीना चौड़ा किये घूम रहा है उसे अपने जूते पर लिखवा के घूम रहा है पचासा और शतक जड़ने के बाद मैदान पर अपने बल्ले को तलवार की तरह घुमाकर दिखा रहा है कि में राजपूत हूँ जैसे वो ये दर्शा रहा हो कि अगर OBC या SC से होता तो शून्य पर आउट हो जाता अपनी जाति पर गर्व करके उसे अपने जूते पर लाता है क्या ये सब हास्यास्पद नहीं लगता।
काश ये व्यवस्था बदले
जब हमारे आदर्श इस प्रकार के उदाहरण देंगे तो फिर कोई नासिर जेल भी जाएगा उससे असल रोज़गार भी छीना जाएगा उसको प्रताड़ित भी किया जाएगा एक नागरिक का नागरिकबोध और देश के प्रति उसका कर्तव्य ही उसे बेहतर इंसान बनाता है कोई जाति या धर्म नहीं।
हो सके तो सोचिए बाकी कहा सुना माफ़ किसी जाति या धर्म को चोट पहुंचाना मकसद नहीं है।
अनवर खान
सोशल एक्टिविस्ट एंड ब्लॉगर