भीड़ के साथ अकेले युवा

पिछले साल जब लोग कोरोना महामारी से जूझ रहे थे अचानक से एक खबर ने सबका दिल तोड़ दिया था वो खबर थी बॉलीवुड फ़िल्म अभिनेता और बेहतरीन कलाकार सुशांत सिंह राजपूत की अचानक हुई मौत। पूरे देश को दुख के साथ साथ हैरत भी थी कि अचानक से ऐसा क्या हुआ, कि सुशांत जैसे जिंदादिल इंसान को इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा। सुशांत के मुस्कुराते हुए चेहरे के पीछे ऐसा क्या था जो सुशान्त को आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा?

सुशांत सिंह जैसा अभिनेता जो दूसरों के लिए प्रेरणा था। सुशांत ने जहां से अपने सफर की शुरुआत की और अपनी मेहनत के बल पर जो मुकाम हासिल किया वो बेहद काबिलेतारीफ था। सुशान्त की छवि एक ऐसे इंसान की थी जो शारीरिक रूप के साथ मानसिक रूप से भी मज़बूत था। और एक आदर्श युवा जो युवाओं के लिए प्रेरणा था।

उसके कुछ समय पश्चात एक खबर आई कि 16 साल की टिकटोक स्टार सिया कक्कर ने भी आत्महत्या कर ली। उस खबर के बाद सिया कक्कर की प्रोफाइल विजिट की और उसकी वीडिओज़ देखकर बेहद दुख हुआ। दोनो ऐसे नौजवान जिनके अंदर जीवन हिचकोले मारता हो उनकी इस प्रकार की मौतों ने कई प्रश्न मन के सागर में थपेड़े खाने को छोड़ दिये ।

ऐसे नौजवान जिनमे अपार संभावनाएं और जीने की हज़ारों ख्वाहिशें होती हैं, और जिनको देखकर लगता है कि उनसे ज़्यादा ज़िन्दगी से प्यार शायद ही कोई करता हो, वो ज़िन्दगी से इतना दुःखी होते हैं कि जीना ही नहीं चाहते। जिन युवाओं के हज़ारों लाखों फॉलोवर्स होते हैं उनसे प्रेरणा लेते हैं वही प्रेरणादायक लोग लाखों लोगों के साथ के बावजूद इतने अकेले हो चुके होते हैं कि ऐसे कदम उठा लेते हैं।

मुझे ऐसे लोगों से पूरी हमदर्दी है किंतु गुस्सा और दुःख अधिक है कि ऐसे लोग जिनको पूरी दुनिया की फिक्र है, हज़ारों लाखों लोगों की खुशियों के लिए नए नए कॉन्टेंट के साथ उनके चेहरे पर मुस्कुराहट लाने के लिए दिन रात मेहनत करते हैं, किन्तु परिवार व अपनों की बिल्कुल भी चिंता नहीं करते कि उनके इस कदम के बाद उनपर क्या बीतेगी।

WHO के आंकड़ों के अनुसार संसार मे लगभग 8 लाख (800000) लोग प्रतिवर्ष आत्महत्या करते हैं यानी प्रति 40 सेकंड एक व्यक्ति आत्महत्या करता है। NCRB के आंकड़ों के अनुसार साल 2015 में भारत मे कुल 133623 लोगों ने आत्महत्या की थी, और शायद उसके साथ कई सारी मौतें ऐसी भी होती होंगी जिनके आंकड़े बाहर नहीं भी आ पाते होंगे।

उससे भी आश्चर्यजनक बात ये है, कि एक रिपोर्ट के अनुसार भारत मे कुल आत्महत्या के आंकड़ों में 15-29 साल के युवाओं की संख्या 40% है।

अचानक युवाओं को अवसाद ग्रस्त होने और आत्महत्या करना बेहद दुःखद है । जब थोड़ी रिसर्च की तो युवाओं के आंकड़ें वाक़ई चोंकाने वाले हैं इन आंकड़ों न3 कई सारे प्रश्न खड़े किये हैं और जिनके उत्तर ढूंढना अत्यन्त आवश्यक है:-

हमारे युवा को ऐसा क्या हुआ कि वो इतना कमजोर हो गया है?
क्यों उसके अंदर से जीतने की और लड़ने की क्षमता समाप्त होती जा रही है?
क्यों वो संघर्षों से इतना डरने लगा है?
क्यों वो ज़िन्दगी की हर जंग बिना लड़े जीतना चाहता है?
आजकल के युवा इतना अकेले कैसे हो गए हैं कि उनके पास लोगों की भीड़ तो है लेकिन वो इतने अकेले हैं कि ऐसा कोई कंधा नहीं है, जिस पर सिर रखकर वो रो सकें और अपना दुख बांट सकें। मेट्रो शहरों में तो ये स्थिति और भी भयावह है जहां लोग इतने आत्मकेंद्रित हो चुके हैं कि उनको किसी दूसरे की परवाह ही नहीं है।

उनके बगल वाले फ्लैट् में कौन रह रहा है और उसका नाम क्या है पता ही नहीं है। पास वाले किस घर में शादी है ये भी पता नहीं होता हालांकि छोटे शहरों और कस्बों में अभी तक ये स्थिति नहीं आयी है, वहां अभी भी लोगों को एक दूसरे की फिक्र है और मौत और ब्याह में पूरा मोहल्ला साथ खड़ा होता है।

अगर एक साधारण बात करूँ तो उम्र के इस पड़ाव पर ज़िन्दगी में कई मौके आते हैं जब सब टूटता हुआ दिखाई देता है, और नकारात्मकता अपना असर दिखाने लगती है। और ये लगभग सबके साथ होता है।

ये आपके साथ भी हुआ होगा कभी नौकरी नहीं मिलने वाले ताने, कभी शिक्षा में मनमाफिक परिणाम नहीं आने पर, कभी प्रेम में टूटने पर, कभी बिजनेस में नुकसान होने पर, बहुत सारे कारणों से ये कई बार होता है।

People inspiration and never giving up concept

ऐसा मेरे साथ भी हुआ है और कई बार हुआ है लेकिन हर बार टूटने पर खुद को समेटा और दोबारा खुद को खड़ा किया। और हर बार स्वयं से कहा कि क्या हुआ जो परिणाम विपरीत आया है अभी तो युवा हैं पूरा जीवन बाकी है और संघर्षों के बिना कैसा जीवन अभी तो सब बदल सकते हैं।

एक प्रश्न जो आपसे कर रहा हूँ जो खुद से भी हर बार किया है।

क्या जीवन संघर्षों का नाम नहीं है?
क्या संघर्ष के बिना जीवन की कल्पना की जा सकती है?
क्या संघर्षों के बिना जीवन नीरस नहीं हो जाएगा?

और हर बार इन्हीं सवालों ने शरीर और जीवन में एक नई ऊर्जा का संचार किया और दोहरी हिम्मत के साथ खड़े होने में मदद की। और स्वयं को हर बार स्थापित भी किया। किन्तु ये कैसा युवा है जो ज़रा ज़रा सी बात पर आत्मसमर्पण करने को तैयार रहता है और अपनी जीवनलीला समाप्त करने के लिए तैयार रहता है?

इस स्थिति से बचने के लिए क्या किया जाए?

मेरा सभी लोगों और मातापिता से आग्रह है कि पहला काम तो ये करें, कि अपने बच्चों को मोबाइल और उनके वर्चुअल संसार से बाहर निकालकर उनको असली दुनिया के संपर्क में लेकर आएं।

अपने जीवन के खट्टे मीठे अनुभवों को उनके साथ सांझा करें कि कैसे जीवन मे मुश्किलों का सामना किया और कैसे खुद को उनसे बाहर निकाला।

ज़िन्दगी की परीक्षाओं और उनके बाद उनके परिणामों से भी उन्हें अवगत कराएं। उन्हें बताएं कि परिणाम सदैव आपके पक्ष में नहीं आते जब वो आपकी अपेक्षा के विपरीत आएं तो उस स्थिति का कैसे सामना करें और परिणाम को अपने पक्ष में कैसे करें इससे उनके अंदर प्रतिरोधक क्षमता पैदा होगई और मुश्किलों का सामना करने का जज़्बा पैदा होगा।

हमेशा उनके आसपास रहें और उन्हें ये एहसास कराते रहें कि उनकी सुरक्षा के लिए और उनकी हर मुश्किल में आप उनके साथ खड़े हैं जिससे वो खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें। उनकी उम्र और जेनरेशन गैप उनको आपके पास आने से रोकेगा तो खुद को उनके पादस लेकर जाएं और अपनी उपस्थिति उनके साथ महसूस करवाएं।

अपने दोस्तों करीबियों से समय समय पर मिलकर अपनी ज़िंदगी को साझा करते रहें जिससे मन हल्का रहे जब दूसरों की दिक्कतें सामने आएंगी तो स्वयं की छोटी लगने लगेंगी और महसूस होगा कि ये सब जीवन का अभिन्न अंग है।

समय समय पर अपने करीबियों के साथ आउटिंग करें सब अवसादों से छुट्टी लेकर स्वयं को हवा के झोंके की भांति बहने दें और ज़िन्दगी को एन्जॉय करें ये तरीका हमेशा बहुत मदद करता है। नई नई जगह जाकर उनको एक्स्प्लोर करें नए लोगों से मिलें नई जगहों पर जाना और नए लोगों से मिलना हमेशा एक ताज़गी का एहसास कराता है।

आपके जो बच्चे,भाई, बहन आपसे दूर रहते हैं हमेशा उनसे बात करते रहें आप उनसे बस कुछ दूर ज़रूर हैं लेकिन हमेशा उनके साथ हैं ये सदैव उन्हें एहसास कराते रहें। जिससे वो सुरक्षित महसूस कर सकें अपनों का साथ सदैव सुरक्षा महसूस कराता है।

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धन्यवाद।

Bolnatohai

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