व्यंग्य : आत्मा से मुलाक़ात

आज सुबह जैसे ही घर से निकला एक आत्मा से टकरा गया उसने पूछा सुबह सुबह कहाँ मेने बोला जिम जा रहा हूँ। अपनी बताओ सुबह सुबह निकल आये पहले तो रात को निकलते थे।

आत्मा ने कहा रात भर घूमकर सुबह को सो जाते थे लेकिन अब क्या बताऊँ 2 दिन से नींद ही नहीं आ रही है।

सारा दिन करवटें बदलते हुए गुज़र जाता है। मेने पूछा- ऐसा अचानक क्या हुआ? उसने कहा बस जब से सुना है कि सरकार ने कहा है कि मेरी मौत ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई तब से बड़ी टेंशन में हूँ।

राज्य स्वास्थ्य मंत्री के अपॉइंटमेंट के चक्कर में घूम रहा हूँ उनसे ये पूछना है कि मंत्री जी ये तो बता दिया कि ऑक्सिजन की कमी से नहीं मरा लेकिन ये तो बता दो आखिर मरा कैसे?

परिवार वाले तो रोकर यही बता रहे थे कि ऑक्सिजन की कमी से में मरा हूँ अब सुना कि उससे तो कोई मरा ही नहीं है।

मुझसे आत्मा ने पूछा तुम तो बड़े घणे समाजसेवी बनकर घूमते हो तुम्ही बता दो कि ये मौतें कैसे हुई हैं? कम से कम मेरा ही बता दो में कैसे टपक गया?

आगे उसने कहा अब तक यही सोचकर खुश था कि चलो ऑक्सीजन से मरे क्योंकि देश में थी ही नहीं बेचारी मेरी सरकार और मेरा मुख्यमंत्री क्या करता उसके घर में थोड़ी ऑक्सीजन प्लांट लगा हुआ है।

और वेसे भी बेचारे को मैने ऑक्सीजन या अस्पताल के लिए थोड़ी वोट किया था जिसके लिए किया था उसपर तो जबरा तरीके से काम चल रहा है।

मेने पूछा भईया कौन से राज्य से हो उसने कहा भईया ये मत पूछो कोई फायदा नहीं है क्योंकि किसी भी राज्य मुख्यमंत्री ये मानने को तैयार नहीं है कि उसके यहां कोई मौत ऑक्सीजन की किल्लत से हुई है।

अब ये पूछकर फिर से पार्टियों में मत उलझाओ ज़िन्दा था तो पूरी ज़िंदगी इन्होंने उलझाए रखा अब मरने के बाद समझ आया है कि ये तो सब मौसेरे भाई हैं तुमने वो फोटू नहीं देखा जिसमें एक राज्य के मुख्यमंत्री दूसरे राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री के घर जाकर चाय नाश्ता कर रहे हैं।

आगे आत्मा बोली भईया जो बात ज़िन्दा पर समझनी थी वो मरने के बाद जाकर समझ आयी है अगर पहले पता होता कि राजनीति मरने के बाद समझ आती है तो पहले ही टपक जाता।

बेकार में इतनी रैलियों में गया इतने दंगे देखे इतने धार्मिक आयोजनों में गया। नारे लगा लगाकर गले को लता जी से अमरीश जी कर लिया लेकिन मुझे ऑक्सीजन सिलिंडर न मिला। अब मैं क्या करता? इतना सब करने के बाद तो अंतिम कार्य मरने का ही रह जाता है, वो भी हो गया।

अब ये कह रहे हैं कि ऑक्सीजन की कमी से तो में मरा ही नहीं तो ज़रूर इसमें मेरे घरवालों का कुछ किया धरा है। मुझसे कहा ऑक्सीजन नहीं मिल रही है मेने भी सब्र कर लिया कि अब ये तो एकदम नई परेशानी है इसमें परिवारवाले क्या कर सकते हैं लेकिन अब लग रहा है इन्हीं की कुछ मिलीभगत थी।

वेसे एक राज्य के मुख्यमंत्री ने तो तभी बोला था कि मेरे राज्य में ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है वो जानते थे लोग ड्रामा रच रहे हैं इसीलिए कहा भी था कि अगर किसी ने ये कहा कि उसके मरीज़ को ऑक्सीजन की कमी है तो उसके विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करके उसकी संपत्ति जब्त कर ली जाएगी धन्य हो ऐसे अंतर्यामी मुख्यमंत्री का जिसको सब पता था कि ऑक्सीजन के नाम पर ये सब ड्रामे होंगे।
इसलिए उन्होंने पहले ही मुंह बंद करना चाहा।

यहां सुप्रीम कोर्ट ने उनका सारा प्लान फेल कर दिया।ये सुप्रीम कोर्ट भी न बड़े बड़े मामलों पर तो बढ़िया और ऐतिहासिक फैसले दे देता है। लेकिन छोटे मामलों में इन्हें टोक देता है वेसे सही भी है छोटी बातें ही आगे जाकर बड़ी बन सकती हैं।

अगर सच बता देते तो मैं इलाज को कहता, अब ऑक्सीजन को क्या कहता ये बहाना बढ़िया था। ऑक्सीजन कहाँ से मिलती? अब हर कोई मुंह से तो भर नहीं सकता उस बेचारी की तरह लेकिन बचा तो वो भी न पाई अपने पति को।

मुझे बड़ा दुःख था कि मेरी पत्नी ने तो ये भी ट्राय न किया वेसे सारी जिदंगी खून पीती रही लेकिन ऑक्सीजन न दी मुझे। अब समझ आया ऑक्सीजन की तो कोई कमी ही नहीं थी कारण तो कोई और ही था जिसके बारे में मुझे भी नहीं बताया।

मगर भईया एक बात बताओ जब में निकल लिया तब ये लोग रोते हुए क्यों कह रहे थे कि ऑक्सीजन नहीं मिली अवश्य ही ये मेरे मुख्यमंत्री को बदनाम करने की विपक्ष की किसी चाल में उलझे थे।सोचा होगा ये तो निकल लिया अब जाते जाते न्यूज़ चैनल की तरह थोड़े पैसे बनालें।

ये तो बड़े ड्रामेबाज़ निकले लेकिन अब देख रहा हूँ मेरी बीवी तो अब भी निढाल है बेटी रोती रहती है छोटा सा बेटा काम करने लगा, बेटी भी नौकरी की बात कर रही है।

शुरू में सोचकर बुरा लगा कि मैने इन्हें कितने नाज़ों से पाला, कितने नखरे उठाये, हमेशा अपने सीने से लगाये रखा और मुझे यों अचानक जाना पड़ा लेकिन अब प्रसन्न भी हूँ कि मेरे बच्चे आत्मनिर्भर हो गए हैं, भले ही बहुत से नेताओं के अपने बच्चे नहीं होंगे लेकिन वो देश के बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे इसके लिए तो मन से इन नेताओं का आभारी होना चाहिए।

फिर बोला चलो भईया अब में जा रहा हूँ मंत्री जी से मुलाकात हो जाये तो पता लगाऊं की में मरा कैसे था? इससे अच्छा अपने प्रिय नेता के लिए कुछ कर जाता या कुर्बान ही हो जाता।

मेने उससे कहा कुर्बान तो अब भी तुम अपने नेता के लिए ही हुए हो इसलिए चिंता मत करो मेरा इतने कहने से वो आत्मा कुछ सोचती हुई आगे उड़ गई।

 

Bolnatohai

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