आप सबको याद होगा कुछ दिन पहले एक वीडियो बहुत वायरल हुआ था, जिसमे हैदराबाद की एक बेहद मासूम और अपने शौहर से बहुत मोहब्बत करने वाली लड़की ने आत्महत्या करने से पहले बनाया था, और अपने मन की व्यथा उस वीडियो में रिकॉर्ड करने के बाद नदी में कूदकर अपनी जान दे दी थी।
जिसने भी वो वीडियो देखा था उसको बहुत बेचैनी हुई थी कि कैसे अपने पति की प्रताड़ना से तंग आकर एक मासूम सी लड़की ने अपनी जान दे दी, मुझे भी वीडियो देखकर अत्यधिक बेचैनी हुई जब विस्तार से उसकी गहराई में गया तो पता लगा कि ये दहेज के लिए अपने पति द्वारा सताई जाने वाली एक मासूम लड़की थी जो काफी हँसमुख और जिंदादिल रही होगी।
कुछ दिन पहले भी मेरी फेसबुक आई डी पर एक दोस्त ने पोस्ट किया था, उसके यहां एक हफ्ते में 2 बेटियों की दहेज़ के कारण हत्या कर दी गयी, जिसको लेकर वो भी काफी डरी हुई थी। एक अविवाहित महिला के तौर पर उसकी ये चिंता और डर जायज़ भी है।
क्या एक समाज के तौर पर, एक बाप, एक भाई, एक माँ, एक बहन, एक दोस्त के तौर पर उसके साथ ये हमारी भी चिंता और डर नहीं होना चाहिए। कोई ऐसा परिवार और घर नहीं है जहां शादी के लिए एक बहन और बेटी न हो या शादी करने और उसके लिए आपके कोई सपने न हों।
लेकिन इन सपनों को पूरा होने से पहले ही मासूम लड़कियां चिता के सेज पर लेट जाती हैं। उसका सबसे बड़ा कारण दहेज की बढ़ती मांग है। आज दहेज इस समाज के लिए अभिशाप बन गया है, और जब तक समाज में दहेज को लेकर कोई दृढ़ फैसला नहीं लिया जाएगा, हमारी बहन बेटियों को यूंही प्रताड़ित करके जलाया और मारा जाता रहेगा।
सबसे पहले अमीर और रसूखदार लोगों को आगे आना होगा।
मेरा खुद का ये अनुभव है कि बड़े बड़े धार्मिक, और दीनदार और सामाजिक रसूख वाले लोग भी इस दहेज रूपी लानत के शिकार हैं। इन धार्मिक, दीनदार और रसूखदारों को सबसे पहले आगे आना होगा और ऐसी दहेज वाली शादियों से इनकार करके समाज को संदेश देना होगा वरना ग़रीब व्यक्ति कभी इस अभिशाप से बच नहीं पायेगा।
इन सरमायेदारों और रसूखदारों को 20 30 लाख या 2-4 करोड़ भी खर्च करने से कोई फर्क नहीं पड़ता है, लेकिन ग़रीब अपना सब कुछ दांव पर लगाकर भी, इन लालची और मुंह फाड़े बैठे दरिंदों की कभी न ख़त्म होने वाली नाजायज़ मांगें और ख्वाहिशें कभी पूरी नहीं कर पाता, और उसका खामियाजा उसकी बहन, बेटी को ही भुगतना पड़ता है। एक ग़रीब और मध्यमवर्गीय परिवार में 2 3 बेटियां इस दहेज़ के कारण अभिशाप बन जाती है वो बेटियां जिनके लिए घर की लक्ष्मी और अल्लाह की रहमत कहा जाता है।
लड़की पक्ष उधार कर्ज़ लेकर एक शादी जब करता है तो कई महीने उस क़र्ज़े को उतारने में निकल जाते हैं, और परिवार जब दोबारा खड़ा होने की कगार पर होता है तब तक दूसरी बेटी की शादी सर पर आ जाती है, फिर वो परिवार उसकी शादियों और उससे पहले होने वाले खर्चों (जो कि शादी से भी अधिक होते हैं लड़का ढूंढना,उसके रिश्तेदारों से मिलना,रस्मों के नाम पर उन्हें तोहफे देना) की धनराशि को इकट्ठा करने में लग जाता है।
लड़को को भी मर्द बनकर कड़ाई से दहेज का विरोध करना होगा।
मेरा एक प्रश्न उन लड़कों से भी है जो शादी के सपने संजोए बैठे हैं वो लड़के जो दहेज में मोटरसाइकिल, कारों के ख्वाब देखते हैं, उनसे कि आखिर तुम कैसे मर्द हो, जो दहेज़ और गैरजरूरी मांगों के लिए अपनी पत्नियों को प्रताड़ित करते हो। कभी सोचा है, वो लड़की जो अपना घर-बार, परिवार छोड़कर आपके परिवार को अपनाने चली आती है।
सब कुछ जानते हुए की अब उसका जीवन बदलने जा रहा है एक साथी,एक बहु बनकर वो आपकी कुक, आपका लॉन्ड्री वाला,आपके घर की साफ सफाई करने वाली, आपके बच्चों की आया सब कुछ बन जाती है, और बदले में आपसे केवल प्रेम के कुछ बोल और हमदर्दी चाहती है।
अगर वो ये चाहती है तो ये उसका ये हक है, और एक मर्द होने के नाते आपकी उसके प्रति ज़िम्मेदारी भी है कि आप उसे सुरक्षा प्रदान करें, उसका ख़याल रखें, उसकी इच्छाओं का ख़याल रखें, उसको प्रेम करें, उसका साथ दें ये आपकी उसकी आपके प्रति निभाई जा रही ज़िम्मेदारियों के प्रति कृतघ्नता होगी, लेकिन लानत है ऐसी नामर्दी वाली मर्दानगी पर जो उसको बदले में इतना भी नहीं दे पाता।
NCRB के आंकड़े डरावने हैं।
अगर आप आंकड़ों पर गौर करें तो पाएंगे कि आंकड़े और भी भयावह हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि देश मे दहेज़ के कारण प्रत्येक घण्टे एक महिला की हत्या होती है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के जुलाई 2015 में जारी आंकड़ों के अनुसार आंकड़ें बताते हैं, 3 वर्षों में 24771 महिलाओं की हत्या दहेज़ के कारण की गई और आश्चर्यजनक बात ये है कि जिन प्रदेशों में धर्म को लेकर सबसे अधिक बात की जाती है और छोंका लगाया जाता है वही प्रदेश दहेज के लिए की जा रही हत्याओं में सबसे आगे हैं।
उत्तर-प्रदेश-7048
बिहार-3830
मध्यप्रदेश-2252
कानूनों का कड़ाई से पालन होना आवश्यक है।
दहेज़ के अभिशाप को रोकने के लिए दहेज़ निषेध अधिनियम, 71961 के अनुसार दहेज लेने देने या इसके लेन-देन में सहयोग करने पर 5 वर्ष की कैद और 15,000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान है।
दहेज के लिए उत्पीड़न करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए (जो कि पति और उसके रिश्तेदारों द्वारा सम्पत्ति अथवा कीमती वस्तुओं के लिए गैरकानूनी मांग के मामले से संबंधित है) के अन्तर्गत 3 साल की कैद और जुर्माना हो सकता है, धारा 406 के अन्तर्गत लड़की के पति और ससुराल वालों के लिए 3 साल की कैद अथवा जुर्माना या कुछ सूरतों में दोनों, यदि वे लड़की के स्त्रीधन को उसे सौंपने से मना करते हैं, का प्रावधान है।
यदि किसी लड़की की विवाह के सात साल के भीतर असामान्य और संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो जाती है, और यह साबित कर दिया जाता है कि, मौत से पहले उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाता था या किया गया था तो भारतीय दंड संहिता की धारा 304-बी के अन्तर्गत लड़की के पति और रिश्तेदारों को कम से कम सात वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है।
मृत्यु होने के उपरांत जो कानून है वो तो अमूमन वजूद में लाया जाता है किंतु दहेज़ एक्ट के वो कानून जो प्रताड़ित महिला के जीवित होने की अवस्था मे लगना चाहिए, और जो दहेज़ के लेनदेन को लेकर या उसमे सहयोग पर हैं, उन पर कहीं कोई कार्यवाही नहीं होती।
ऐसे में ये सवाल उठ सकता है कि क्या ये लागूू व्यवस्था भी लड़की के मरने की प्रतीक्षा करती है? अगर दहेज़ के मांगने पर ही कार्यवाही हो जाये या शादियों व समारोहों पर कड़ाई से नज़र रखी जाए, तो समाज को कुछ बेहतरीन उदाहरण दिए जा सकते हैं, लेकिन इसका एक दूसरा पहलू ये भी है कि ये डीलें घर के अंदर परिवारों और बिचौलियों के समक्ष तय की जाती हैं उस सूरत में कानून भी कुछ नहीं कर सकता।
आज जीवन विलासितापूर्ण होता जा रहा है जो गृहस्थी का सामान या एक धनराशि, एक लड़का अपनी एवरेज इनकम में 15-20 साल काम करके भी शायद इकट्ठा नहीं कर सके, वही धनराशि और सामान आज लड़का व उसके परिजन विवाह के समय लड़की पक्ष से बटोर लेना चाहते हैं।
यह उपभोक्तावादी प्रवृत्ति भारतीय सभ्यता और संस्कृति के बिल्कुल विरुद्ध है। आज विवाह जैसी इन पवित्र परम्पराओं के प्रति हमारे समाज का दृष्टिकोण अत्यंत दूषित और लोभी होता जा रहा है। दहेज एक सामाजिक समस्या है और ये लगभग भारत में सभी धर्मों का हिस्सा बन चुका है, जिसका उन्मूलन तभी हो सकता है जब सभी सम्प्रदाय के लोग दृढ़ संकल्प लेकर इसके विरुद्ध कदम उठाएं।
सरकार के साथ सबको आगे आकर इसका कानून का प्रचार प्रसार करके उनको प्रभावी बनाना होगा।
दहेज से सम्बंधित किसी भी कानून को प्रभावी बनाने के लिए सरकार को अपनी पहल पर कदम उठाने होंगे, किन्तु उससे अधिक ज़िम्मेदारी समाज की है। समाज को अगर अपनी बेटियों को बचाना है तो उसको स्वयं ये ज़िम्मेदारी उठानी ही होगी, क्योंकि अगर आप बेटे के पिता या भाई हैं तो याद रखिये की उसके साथ आप एक बेटी के पिता और एक बहन के भाई भी हैं। आज आप लड़के वाले हो सकते हैं किंतु जल्दी ही आपको लड़की वाला भी बनना पड़ेगा।
अगर आज आप किसी बेटी के पिता या भाई से कुछ मांग रहे हैं तो कल उनकी जगह आप होंगे इसलिए अब समाज को इसको गंभीरता से लेना होगा और अपनी बहन बेटियों की रक्षा करनी होगी अब एक समाज के तौर पर आप सोचें कि आप क्या चाहते हैं?
लेकिन इन्ही कानूनों का एक पहलू ये भी जिसको नज़रंदाज़ करना समाज के एक वर्ग के साथ अन्याय होगा। बहुत सारे सीधे-साधे युवकों और उनके परिवारों को कई बार इन्हीं कानूनों की ढाल बनाकर नाजायज़ फंसा दिया जाता है, और उनका जीवन नर्क बना दिया जाता है। बहुत सारे मामलों में ये देखा गया है कि लड़की पक्ष की ओर से लड़कों और उनके परिवारों का जीवन नर्क बना दिया गया है और बिना कुछ किये की सज़ा उन्हें मिली है।
अगर ये अभिशाप देश से समाप्त हो गया तो बहुत सारे बेकसूर नौजवानों को भविष्य में होने वाली इस प्रताड़ना से मुक्ति मिल जाएगी। संसार के बहुत से देशों में आप देखेंगे तो पाएंगे कि लड़का और लड़की एक दूसरे को पसंद करके अपने घरवालों को आपस में मिलवाते हैं और एक सादा से समारोह में दोनों पक्षों के कुछ सगे संबंधियों और दोस्तों के साथ विवाह संपन्न हो जाता है।
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