07 जुलाई सन 2021 दिन बुद्धवार भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक अविस्मरणीय दुख की रूपरेखा तैयार कर रहा होगा किसने सोचा था? आज इस दिन फिल्मों के सुपर स्टार अभिनय सम्राट और ट्रेजिडी किंग कहे जाने वाले दिलीप कुमार उर्फ मोहम्मद यूसुफ खान संसार को अलविदा कहकर इस दुनिया से रुख़सत कर गए। बुद्धवार 7 जुलाई को सुबह 7.30 बजे उन्होंने मुम्बई के हिंदुजा अस्पताल में आखरी सांस ली और इसी के साथ एक युग का अंत हो गया।
दिलीप साहब ने अपने किरदारों के माध्यम से आम आदमी को पर्दे पर उतारा।
दिलीप साहब ने एक आम आदमी को पर्दे पर बहुत अच्छे से प्रदर्शित किया, जिससे एक आम आदमी ने खुद को दिलीप साहब से जुड़ा पाया। जब वो पर्दे पर कोई किरदार जीवंत करते थे तो लोग खुद को उस किरदार से जुड़ा हुआ महसूस करते थे।
इसी कारण दिलीप साहब ने फ़िल्म इंडस्ट्री में इज़्ज़त, दौलत और शोहरत के साथ वो मुकाम हासिल किया जिसकी आज के दौर में कल्पना करना भी मुश्किल है।फिल्मों ने उन्हें मान सम्मान के साथ संसार मे वो प्रतिष्ठा प्रदान की जो अविस्मरणीय है।
वो अभिनय के चलता फिरता एक स्कूल थे जब वो कैमरे के सामने अपनी अदाकारी का जलवा बिखेरते थे और जिस अंदाज़ से डायलॉग बोलते थे उसका कोई सानी नहीं था और आज के दौर के बहुत से कलाकारों ने उनकी नकल करके खुद को इंडस्ट्री में स्थापित किया।
बड़े बड़े दिग्गज अभिनेता उनके अभिनय के कायल थे।
राजेंद्र कुमार,मनोज कुमार, धर्मेंद्र और अमिताभ बच्चन जैसे दिग्गज अभिनेताओं ने कई बार स्वयं ये सच स्वीकार किया कि उन्हें फिल्मों में काम करने की प्रेरणा दिलीप साहब की एक्टिंग को देखकर मिली और उन्हें देखकर अभिनय की बारीकियों को सीखा।
मनोज कुमार तो दिलीप कुमार से इतना अधिक प्रभावित थे कि उन्होंने तो अपना नाम भी दिलीप साहब द्वारा निभाए गए मनोज नाम के कैरेक्टर से प्रेरित होकर अपना वास्तविक नाम बदलकर पर्दे का नाम मनोज रख लिया था।
दिलीप साहब नेताजी सुभाषचंद्र बोस से बहुत प्रभावित थे।
ये शायद सबको नहीं पता है कि दिलीप साहब का यूपी के मेरठ से काफी पुराना और गहरा रिश्ता रहा है। मेरठ में चार बार सांसद रहे और आज़ाद हिंद फौज के सिपाही जनरल शाहनवाज खां साहब दिलीप साहब के अजीज दोस्त हुआ करते थे।
दिलीप साहब नेताजी सुभाषचंद्र बोस से काफी प्रभावित थे शायद इसी कारण वो तकरीबन हर चुनाव में शाहनवाज खां के लिए वोट की अपील करने मेरठ आया करते थे। दिलीप साहब कहा करते थे कि नौजवानों को ये दिखाना चाहिए कि वो नेताजी सुभाष चंद्र बोस के इस सिपाही के साथ हैं।
दिलीप कुमार उर्फ यूसुफ खान का जन्म 11 दिसम्बर 1922 को पेशावर के क़िस्सा ख़्वानी बाज़ार में हुआ था। उनका परिवार पाकिस्तान बनने से पहले ही 1935 में मुम्बई आ गया था। उनके पिता का नाम लाला गुलाम सरवर ख़ान था और उनकी मां का नाम आएशा बेगम था।
पिता के डर से फिल्मों में नाम बदला।
दिलीप कुमार का असली नाम मोहम्मद युसुफ खान था। दिलीप कुमार के नाम के बदलने की कहानी उनके हिन्दी सिनेमा में उनके सफर की कहानी से जुड़ी हुई है। दिलीप साहब के पिता मुम्बई में फल बेचते थे। एक दिन उनकी किसी बात पर अपने पिता से बहस हुई, उसके बाद वो घर छोड़कर पुणे चले गए। यहां उन्होंने एक आर्मी कैंटीन में सैंडविच बेचने का काम किया। जहां उनका अच्छा खासा काम चलने लगा फिर किसी वजह से वो काम छोड़कर वापस मुंबई आ गए।
एक दिन उन्हें डॉक्टर मसानी मिले जो बॉम्बे टॉकीज की मालकिन देविका रानी से मिलने जा रहे थे। अपनी बायोग्राफी ‘द सबस्टैंस एंड शैडो” में उन्होंने बताया कि वो उनके साथ जाना तो नहीं चाहते थे लेकिन फिल्म देखने के लालच में चले गए। यहीं उनकी मुलाकात देविका रानी से हुई। देविका ने उन्हें अपने यहां 1250 रुपए महीने की नौकरी पर रख लिया।
उनकी शक्ल देखकर देविका ने उनसे पूछा कि क्या वो एक्टिंग करना चाहते हैं? उन्होंने हाँ तो कहा लेकिन एक समस्या आ गयी। फिल्मों में काम के लिए देविका रानी ने उनसे नाम बदलने को कहा। वो ये सुनकर संशय में आ गए उन्हें अपना नाम बदलना अजीब लगा।
लेकिन फिर सोचा कि नाम बदलने से उनके पिता को पता नहीं चलेगा कि वो फिल्मों में काम करते हैं क्योंकि उनके पिता फिल्मों में काम करने को अच्छा नही समझते थे। पिता के डर से दिलीप कुमार अपना नाम मोहम्मद यूसुफ खान से बदलने को तैयार हो गए।
उनके पिता फिल्मों में काम करने से इतना चिढ़ते थे कि अपने बचपन के दोस्त को भी बातें सुना दिया करते थे। पृथ्वीराज कपूर के पिता दिलीप कुमार के पिता के दोस्त थे और साथ ही मुम्बई आकर बसे थे। दिलीप साहब के पिता अक्सर पृथ्वीराज के पिता को पृथ्वीराज के फिल्मों में काम करने को लेकर टोकते थे और उनको बोलते थे कि ये तुम्हारा जवान लड़का ये क्या काम करता है।
जब नाम बदलने की बात आई तो दिलीप साहब ने हामी भर दी वो नहीं चाहते थे उनके पिता उनसे शर्मिंदा हों। देविका रानी ने उनसे कहा कि उनके दिमाग मे सबसे पहला नाम दिलीप ही आया है और इसी वजह से मोहम्मद यूसुफ खान दिलीप कुमार हो गए।
ज्वार भाटा से उनके केरियर की शुरुआत हुई लेकिन कोई खास पहचान नहीं मिली बाद में उन्हें जुगनू से पहचान मिली। धीरे धीरे वो इंडस्ट्री में छा गए और ट्रेजेडी किंग के नाम से अपनी पहचान बनाई।
काम के प्रति उनकी लगन से आज के दौर के कई अभिनेता प्रभावित हैं।
उनके बारे में एक बात ये भी मशहूर रही कि काम को लेकर उनका इस कदर पेशन था कि वो अपने कपड़े तक सीन के हिसाब से सिलवाते थे और अपने टेलर को साथ लेकर कपड़े खरीदने जाते थे जिससे वो उस सीन में जान डाल सकें। उनका काम के प्रति ये जुनून ही उनको फिल्मी दुनिया में वो मुकाम दिला गया जिसको फ़िल्म इंडस्ट्री में सुनहरी लफ़्ज़ों में लिखा जाएगा।
दिलीप साहब के निभाये हुए किरदार फ़िल्म इंडस्ट्री में अमर हैं और दुनिया उनको हमेशा याद रखेगी। उन्होंने काफी वक्त से फिल्मों में काम करना बंद कर दिया था उसके बावजूद उनके जाने से फ़िल्म इंडस्ट्री में जो जगह खाली हुई है उसकी भरपाई नामुमकिन है।
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