हया

मैंने एक प्यारी सी तस्वीर अपने इस दिल में सजा रक्खी है।
दिल के इस मंदिर में एक मूरत बना रक्खी है।।

मोहब्बत तो उस से है ही, खंजर भी उसी के हाथ में दिया है।
वो कमबख्त लेता ही नहीं, कब से हथेली पे जाँ रक्खी है।।

उसने जो वो दिल कई तालों में महफूज़ रख दिया है।
मुझे यकीं है मैं ढूंढ ही लूंगा, वो चाबी जहां रक्खी है।।

वो मेरा ही तो है, उसे मेरे पास हर हाल में आना ही होगा।कोई उसपे ग़ज़ल कहे, किसी दिल में वो चाहत कहाँ रक्खी है।

उसको डर है कि कहीं कोई हमारा अफसाना न बना दे।
में भी सुन लेता हूँ, उसने बहलाने को जो कहानी बना रक्खी है।।

उसके चेहरे की वो मासूमियत वो नूर मेने ही महसूस किया है।
मैं ही तो हूँ जिसने महताब से वो चादर हटा रक्खी है।।

उसकी वो ख़ामोश मोहब्बत दिल तक आई तो है, लेकिन में भी खामोश हूँ।
क्योंकि उसे गुमाँ है उसने, अपने गिर्द कोई दीवार बना रक्खी है।।

वो दुश्मने जाँ ही सही लेकिन देखके उसका वो नज़रें झुका लेना।
मुझे सुकूँ है कि उसने मोहब्बत की इतनी तो हया रक्खी है।।

 

Bolnatohai

Bolnatohai

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