जब भी कहीं इंसानियत का नुकसान होता है, या इंसानी जानें जाती हैं, या कहीं पर किसी पर कोई जुल्म होता है, या कोई अन्याय होता है, तो केवल तकलीफ होती है। एक इंसान होने के नाते उस दर्द को महसूस करना और उसकी स्थिति को समझना ही किसी व्यक्ति को इंसान होने की श्रेणी में खड़ा करता है।
संसार में कहीं भी, किसी भी स्थान या किसी भी देश में कभी कोई आपदा आती है, चाहे वो प्राकृतिक हो, या अप्राकृतिक हो, पूरी दुनिया उस स्थान उस देश के साथ कंधे से कंधा मिलाकर, उसको उस विपत्ति और उस स्थिति से निकालने में उसकी सहायता हेतु जुट जाती है।
अनेकों ऐसे उदाहरण हैं जहां विपरीत परिस्थितियों और हालातों में पूरा संसार एकजुट दिखाई दिया है। यही नीति भी होनी चाहिए और यही कर्तव्य भी है। अगर मैं अपनी बात करूँ तो हर मुश्किल और परिस्थिति में स्वयं को उससे जुड़ा महसूस किया है।
देश या दुनिया में जब भी कोई आपदा आयी है सदैव स्वयं को मायूस और पीड़ा में महसूस किया है, और स्वयं से जो हो सका है वो भी करने की पूरी ईमानदारी से कोशिश भी की है। शायद इसी कारण स्वयं को किसी भी उपाधि की तुलना में एक समाजसेवी ही कहलाना दिल को बहुत सुकून देता है।
विपरीत परिस्थितियां, चाहे वो केदारनाथ आपदा हो, सऊदी अरब में हज के दौरान मक्का में मस्जिद में भगदड़ वाला हादसा हो, मुम्बई अटैक, पुलवामा,न्यूज़ीलैंड का आतंकी हमला या अभी कोरोना काल में विभत्स दृश्य हों। सदैव हर परिस्थिति से स्वयं को जुड़ा हुआ महसूस किया है, और जो भी कोशिश कर सकता हूँ वो की भी है कभी कोई स्थिति जो पहुंच से दूर है तो कम से कम प्रभावितों के लिए प्रार्थना ही कर पाता हूँ।
यहां जितने भी लोग मेरे इस ब्लॉग को पढ़ रहे हैं उन सबसे एक सवाल कर रहा हूँ और मुझे आशा भी है कि आप सब इसका बिल्कुल ईमानदारी और सोच समझकर दिल से उत्तर देंगे। हालांकि मुझे इस प्रश्न का उत्तर पता है फिर भी खुद को सही मापने के लिए आपसे ये प्रश्न कर रहा हूँ।
क्या हम सबको ये नहीं लगता कि जब इंसानियत मरती है तो हम सबको उसका दुःख होना चाहिए?
मुझे लगता है सबका उत्तर समान ही होगा कि हां हम सबको उसका दर्द महसूस होना चाहिए और होता भी है, लेकिन आजकल दुनिया में और खासतौर से हमारे इस सुंदर देश में तो कुछ अलग ही प्रजाति का इंसान तैयार हुआ है या तैयार किया गया है।
बेहतर शब्द ये है कि उनको इंसान कहना उसका अपमान हैै येे इंंसान हैं ही नहीं कुछ अलग ही प्रजाति के जीव हैं। जिनको इंसान के मरने पर उसका खून देखकर शांति मिलती है और ऐसा नहीं है कि ये कोई जंगली और शरीर पर पत्ते लपेटने वाली प्रजाति है बल्कि ये काफी शिक्षित और सूट बूट,टाई में भी मिल जाती है व समाज में सम्मान की दृष्टि से देखी जाने वाली और बड़े बड़े ओहदों पर बैठे हुए लोग भी हो सकते हैं।
इनको देखकर आप ये कतई अंदाज़ा नहीं लगा सकते कि ये इंसान आदमखोर प्रवृत्ति का होगा। ये वास्तविकता में इंसान के रूप में पिशाच हैैं और जि1सको इंसानी लाशें या खून पसंद हैं। ये लाखों रुपये के कपड़े पहने हुए, हज़ारों रुपये के कलम चलाते हुए और लाखों रुपये के ब्रांडेड और जूते,चश्मे पहनने वाले लोग भी हो सकते हैं जो बाहर से देखने पर इंसान जैसे ही प्रतीत होते हैं।
ये वो लोग हैं जो इंसान का आवरण ओढ़े हुए हिन्दू या मुसलमान, सिख ,ईसाई या किसी भी धर्म के तो हैं लेकिन इंसान कतई नहीं हैं। लोगों के मरने पर इन्हें सुकून मिलता है ये खुश होते हैं और जश्न मनाते हैं। इतिहास में भी ऐसे बहुत से नाम हैं जो इसी प्रजाति के थे और बहुत सारे नाम हैं जो आज भी दुनिया में ऊंचे ओहदों और पदों पर विराजमान हैं।
ये वो दरिंदे हैं जो केदारनाथ आपदा के समय लोगों के मरने पर भी खुश थे और जब न्यूज़ीलैंड की मस्जिद में बेगुनाह और मासूम लोगों को मारा जा रहा था तब भी ये जश्न मना रहे थे। इनकी दरिंदगी का आलम ये है कि ये किसी मासूम बच्ची के बलात्कार पर भी खुश हो सकते हैं। उन बलात्कारियों के लिए मंच से लेकर सड़कों तक रैलियां कर सकते हैं।
लेकिन वो बेचारे ये नहीं जानते जब हम किसी के दुख में खुश हो रहे होते हैं और किसी के दर्द में जश्न मना रहे होते हैं यही वो समय है जब हम इंसान से जानवर और नरभक्षी पिशाच में बदल रहे होते हैं।
अगर वर्तमान की बात करें तो आज के हालात में जो कुछ भी दुनिया में हो रहा है या, ताज़ा घटनाक्रम में जो कुछ अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा किया जा रहा तख्तापलट और उसके बाद अफ़ग़ानिस्तान के नागरिकों की दुर्दशा हो, या किसी मजबूर लाचार को पीटकर कोई धार्मिक नारे लग रहे हों।
अफ़ग़ानिस्तान को अल्लाह ने क्या बनाया था और उसके कथित नेक बंदों ने उसका क्या हाल कर दिया आप सोच भी नहीं सकते। अफ़ग़ानिस्तान का नाम आते ही आपके ज़ेहन में जो तस्वीर आती है विश्वास कीजिये वो ऐसा नहीं था आपके डेस्कटॉप और कम्प्यूटर पर जितने भी नेचुरल वॉलपेपर सेट हैं हो सकता है उनमें से कई अफ़ग़ानिस्तान के हों, लेकिन मज़हब के नाम पर उसका वो हाल कर दिया जो आप आज देख रहे हैं।
अगर इसके वीडियो देखकर आपको अच्छा लग रहा है या आप ये सोचकर मौन हैं कि ये आपकी चिंता का विषय नहीं है तो इंतज़ार कीजिये इस नफरत और इंसानों को खा जाने वाली जंग में अगली बारी आपकी है और आपको ये नफरत खाकर ही रहेगी या तो आप गोली चला रहे होंगे, बम फोड़ रहे होंगे, किसी मजबूर से धार्मिक नारे लगवाने के लिए उसकी लिनचिंग कर रहे होंगे या आप गोली खा रहे होंगे या फिर किसी कट्टरपंथी की घृणा का शिकार हो रहे होंगे और इन दोनों ही स्थितियों में से किसी में भी शामिल होकर आप खुश तो नही हों रहे होंगे।
कुछ लोग तालिबान के किये जा रहे कृत्य को हमारे देश में भी सपोर्ट कर रहे हैं ये देखकर शर्म आती है कि जब आप मज़हब के नाम पर तालिबान का समर्थन करते हैं तो फिर तुम्हें अख़लाक़, पहलू खान, जुनैद, आसिफ़ा, तबरेज़ या ऐसे और भी सैंकड़ों लोगों के लिए आवाज़ उठाने का हक़ भी नहीं है क्योंकि तुम इसके लायक नहीं हो।
इस हिसाब से वो नरभक्षी भी सही हो जाएंगे जो किसी निर्दोष से नारे लगवाकर या किसी बेगुनाह को पीट पीटकर उसकी हत्या करके स्वयं को धर्म का रक्षक साबित करने का असफल प्रयास करते हैं। फिर आपमें और उनमें क्या अंतर है आखिर दोनों ही धर्म के नाम पर किये जा रहे ज़ुल्म को जायज़ ठहरा रहे हो।
मेरी बात थोड़ी कड़वी ज़रूर है लेकिन जो भी लोग इस प्रकार की मानसिकता रखते हैं ये दुनिया आपके लिए नहीं है किसी और ग्रह पर जाकर आपको अपनी ये नफरत की दुनिया सजानी चाहिए जहां बारिश में सुकून की ठंडक की जगह खून की बूँदे हो, झरनों और नदियों में मीठे पानी की जगह खून हो और पेड़ पौधों पर फल और फूल की जगह इंसानों की लाशें और उनके कटे हुए सर हों।
वही दुनिया तुम्हारी इस आदमखोर मानसिकता को शांत कर पायेगी क्योंकि ये दुनिया बहुत खूबसूरत है तुम्हारे जैसे लोग केवल इसको गंदा और दूषित कर रहे हो। तुम्हारे अंदर का ज़हर तुम्हारे इस संसार मे सांस लेने से इस संसार को दूषित कर रहा है ये स्थान तुम्हारे लिए नहीं है इसको ईश्वर ने बहुत सुंदर बनाया है इसको वेसे ही रहने दो।
आज आवश्यकता इस बात की है कि ऐसे मुट्ठी भर लोगों को उनकी सही जगह दिखाकर संसार को बचाने के लिए पहल की जाए और युवा बाहर निकलकर आपसी प्रेम और भाईचारे की नींव लगाएं एक दूसरे के हाथ मे हाथ डालकर एक दूसरे का साथ दें व एक दूसरे की रक्षा करें।
अगर कहीं कोई किसी पर कोई भी ज़ुल्म कर रहा है तो लोग तमाशाई न बनें बल्कि उसकी मदद करके उसकी व मानवता की रक्षा और मदद करें तभी ये दुनिया और हमारा देश आगे बढ़ सकता है और तरक़्क़ी के नए आयाम रच सकता है।
आपको ये ब्लॉग कैसा लगा आपसे अनुरोध है अपनी राय अवश्य दें या इससे संबंधित आपके जो भी प्रश्न हों आप कमेंट बॉक्स में जाकर पूछ सकते हैं। धन्यवाद।I