इश्क़

कितना मुश्किल है इश्क़ की कहानी लिखना।
जैसे पानी पे, पानी से, पानी लिखना।

सिर्फ कश्ती की ही बात क्यों, वहां तूफानों का भी डेरा है।
कितना मुश्किल है ग़म के थपेड़ों में लहरों पर रवानी लिखना।

ये जो मंज़र हैं, थोड़ी दुश्वारियाँ और मशक़्क़तें ही सही।
मेरा रब की शायद ख़्वाहिश है मेरे दिल पर कोई निशानी लिखना।

मेने तो पूरी उम्र गुज़ार दी इक तेरी रहगुज़र में।
कैसे मुतमईन हो जाऊं उसको तेरा, सिर्फ मेरी जवानी लिखना

मेने तो ये इश्क़ बड़ी समझदारी के साथ किया है।
लेकिन तू जब भी ज़िक्र करे तो उसे मेरी नादानी लिखना।

तेरी ज़ुल्फ़ों के साये कभी तो मिलेंगे कभी तो इस धूप में छांव होगी।
मेरी कलम की भी ख़्वाहिश है मेरी कोई शाम सुहानी लिखना।

Bolnatohai

Bolnatohai

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