खबर का हुआ असर। “बोलना तो है” में लगातार खबर चलने के बाद सहसवान की ऐतिहासिक धरोहर “ढंड” झील की खुदाई शुरू।

खबर का हुआ असर। “बोलना तो है” में लगातार खबर चलने के बाद सहसवान की ऐतिहासिक धरोहर “ढंड” झील की खुदाई शुरू।

सहसवान स्थित सूख चुकी ऐतिहासिक ढंड झील को पुनर्जीवित करने के लिए आज प्रशासन द्वारा जेसीबी से खुदाई शुरू की गई है। “बोलना तो है” द्वारा लगातार इस झील से संबंधित खबरें चलाई गईं, जिसका असर होता हुआ भी दिखाई दे रहा है।

आज प्रशासनिक अधिकारियों और लेखपालों द्वारा पुलिस दल बल के साथ जाकर जेसीबी से झील की खुदाई शुरू की गई, झील के कई नंबरों में खाली पड़ी ज़मीन में इस समय खेती बाड़ी की जा रही है। कोई अप्रिय घटना न हो इसके लिए पुलिस की एक टीम मौके पर मौजूद रही। खुदाई देखकर भीड़ भी मौके पर जमा हो गई लेकिन किसी ने भी खुदाई का विरोध नहीं किया।

मामला उत्तर प्रदेश के ज़िला बदायूँ के कस्बा सहसवान का है, जहां वर्षों से सूख चुकी ऐतिहासिक धरोहर ढंड झील को पुनर्जीवित करने के लिए, समाजसेवियों द्वारा लगातार आवाज उठाई जा रही थी। एआईएमआईएम नेता शरीफुद्दीन कुरेशी द्वारा अधिकारियों को ढंड झील को पुनर्जीवित करने के लिए लगातार प्रार्थना पत्र दिए जा रहे थे।

अपरज़िलाधिकारी प्रशासनद्वारा इस मामले को गंभीरता से लिया गया और ऐतिहासिक झील को दोबारा पुनर्जीवित करने के लिए, नायब तहसीलदार की अध्यक्षता में एक टीम गठित की गई, जिसको ढंड झील की पैमाइश करके झील को पुनर्जीवित करने का आदेश दिया गया और नगर पालिका को भी तहसील कर्मचारियों और अधिकारियों का सहयोग करने का आदेश दिया गया

कभी सहसवान की ऐतिहासिक और आर्थिक धुरी रही, ढंड झील कई वर्षों से सूखी पड़ी है। खाली जमीन देखकर लोगों ने इस पर खेती-बाड़ी शुरू कर दी और अवैध कब्जे हो गए। समाजसेवियों द्वारा लगातार ढंड झील को पुनर्जीवित करने का मुद्दा उठाया जा रहा है। इसबार मीडिया ने भी उनका साथ दिया। कई प्रतिष्ठित अखबारों जिनमें “रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा” उर्दू दैनिक, अमृत विचार द्वारा लगातार इस झील से संबंधित खबरें चलाई गईं, जिसका असर होता हुआ भी दिखाई दे रहा है।

आज प्रशासन के अधिकारियों और लेखपालों द्वारा पुलिस दल बल के साथ जाकर जेसीबी से झील की खुदाई शुरू की गई, खाली पड़ी ज़मीन पर कई नम्बरों में झील में लोगों द्वारा खेती की जा रही है। कोई अप्रिय घटना न हो, इसके लिए पुलिस की एक टीम मौके पर मौजूद रही। खुदाई देखकर भीड़ भी मौके पर जमा हो गई लेकिन किसी ने भी खुदाई का विरोध नहीं किया।

लोगों से बात करने पर उन्होंने इस कदम को अच्छा बताया और कहा, अगर ये एक बार फिर झील दोबारा ज़िन्दा होगी तो ये सहसवान के लिए बड़ा काम होगा और वो भी उन प्राकृतिक दृश्यों के गवाह बनेंगे जिसके गवाह कभी उनके पूर्वज हुआ करते थे।

राजाओं की नगरी कहलाने वाला सहसवान कभी ऐतिहासिक धरोहरों की नगरी भी रहा है और ऐतिहासिक व सांस्कृतिक रूप से बेहद धनवान नगर है। राजा सहस्त्रबाहु से लेकर बादशाह जहांगीर तक का जुड़ाव यहां से रहा है। जहांगीर के यहां ठहरने की वजह से यहां जहांगीराबाद नाम का एक मोहल्ला आज भी है और उसके आसपास किलानुमा दीवारें उसके इतिहास की गवाह हैं।

ऐसी बहुत सी किवदंतियों, मान्यताओं और ऐतिहासिक धरोहरों ने सहसवान को इतना महत्वपूर्ण नगर बनाया है जैसे राजा सहस्त्रबाहु का टीला जिसके बारे में कहा जाता है कि ये कभी राजा सहस्त्रबाहु का महल था जिसे भगवान परशुराम ने क्रोधित होकर राजा सहस्त्रबाहु के महल को नष्ट कर दिया था वही महल आज टीले के रूप में दिखाई देता है और सहसवान के प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में जाना जाता है।

समय के साथ इसकी ऊंचाई और चौड़ाई दोनों कम हो गए और कटान कर दिया गया वहीं अगर दूसरी धरोहर की बात करें तो जल के साथ स्रोतों से बना हुआ सरसोता भी बेहद महत्वपूर्ण स्थान है जिसके बारे में मान्यता है कि राजा सहस्त्रबाहु और भगवान परशुराम के बीच एक युद्ध हुआ था और जब भगवान परशुराम ने राजा सहस्त्रबाहु पर अपने फरसे से सात बार किए थे जो भूमि के जिस हिस्से पर लगे वहां से जल के साथ स्रोत बन गए और इसका नाम सप्तस्रोता पड़ा जो बाद में सरसोता में परिवर्तित हो गया।

वहां से जारी स्रोतों से जो जल बहता था वह जल सरसोते से राजा सहस्त्रबाहु के टीले से होता हुआ कई किलोमीटर दूर जाकर महावा नदी में गिरता था उसी कई किलोमीटर जल बहने से दंड झील का निर्माण हुआ था जो कभी सहसवान की शान हुआ करती थी। आज यही ढंड झील पुनर्जीवित करने की बात चल रही है।

Anwar Khan

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