मज़हब की अफ़ीम और उसका खतरनाक नशा

आजकल सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है और बहुत सारे लोगों के व्हाट्सएप्प स्टेटस की भी शोभा बढ़ा रहा है जिसमे एक युवक बड़ी शान से कह रहा है कि “हम किसी पार्टी से नहीं हैं हमें किसी से कोई मतलब नहीं है हम हिन्दू हैं हिन्दू होना गर्व की बात है और कट्टर हिन्दू होना सौभाग्य की बात है”।
वो अलग बात है कि वो बोल रहा है की मैं किसी भी पार्टी से नहीं है लेकिन अगर मैं गलत नहीं हूं तो वास्तविकता यही है कि वोट उसने भी उसी अमुक पार्टी को ही दिया होगा, जिसने उसको ये बताया है कि उसको कट्टर हिन्दू होने पर गर्व होना चाहिए। वो अलग बात है कि वो ये कहकर ये साबित करना चाहता है कि मुझे किसी पार्टी से कोई मतलब नहीं है और उसकी वो पार्टी इस अपराधबोध से मुक्त हो जाये कि उसने उसे ऐसा बनाया है।
लेकिन अगर उसकी भाषा पर गौर किया जाए तो ये वही भाषा है जो उस पार्टी ने युवाओं को घुट्टी बनाकर पिला दी है उसके कट्टर होने से उनका एक वोट बिल्कुल पक्का है उनके सैंकड़ों झूठे वादों, और झूठे सपनों और उसकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी की खाट खड़ी करने के बावजूद।

नौजवान इस वीडियो को शेयर कर रहे हैं, अपना स्टेटस लगा रहे हैं बिना ये सोचे और जाने कि उन्हें इस कट्टरता की कभी ज़रूरत ही नहीं थी। उनका सपना कट्टर होना कभी रहा है नहीं है उन्हें केवल अपने परिवार और देश के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वहन करना था।
केरल की कई घटनाएं सामने आईं जहां कई मुस्लिम नवयुवक एजेंसियों के हत्थे लगे जो मुजाहिद बनने जा रहे थे पढ़े लिखे और काबिल नौजवानों को इसी धर्म की अफीम खिलाकर उन्हें उनके ही देश के विरुद्ध हथियार बनाया जाना था। ये तो वो थे जो पकड़ में आ गए होंगे बहुत सारे ऐसे भी होंगे जो कट्टर बन रहे होंगे या बना दिये गए होंगे।

वो कौन से ऐसे लोग हैं जो छोटे छोटे बच्चों के हाथों में बंदूकें तलवार और चाकू दे देते हैं कि जाओ और अपनी जन्नत बना लो या अपने धर्म की रक्षा कर लो। जिस मासूम के हाथ में किताब देकर उसकी आने वाली ज़िन्दगी को खुशहाल बना सकते थे उन्हीं नन्हे हाथों में मौत की लकीर बना दी गयी वो या तो किसी को मौत दे रहा होगा या अपनी मौत चुन रहा होगा लेकिन दोनों ही स्थितियों में नुकसान केवल इंसानियत का ही करेगा।

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बेचारे वो जानते ही नहीं कि जब दुनिया में उनको जज किया जाएगा तो उनकी कट्टरता से नहीं उनकी आर्थिक स्थिति से, उनके आसपास सुरक्षित माहौल से, उनके यहां महिलाओं की स्थिति से, उनके जीवन स्तर और यापन करने के तरीकों से किया जाएगा। उन्हें बताया जाता है कि वो तो अल्लाह या भगवान का कार्य कर रहे हैं कितने मूर्ख हैं बेचारे क्या अल्लाह और भगवान को ऐसे लोगों से काम लेना है जो उसकी बनाई हुई सबसे सुंदर रचना (मनुष्य) से ही घृणा करता है। भगवान को या अल्लाह को अब अपना काम करवाने के लिए इस तुच्छ मानव की ज़रूरत है ये सोचकर भी हंसी आती है। ज़रूरत उसे है जो इन नौजवानों के सपने तुड़वाकर अपने वो सारे सपने पूरे करेगा जो उसने देखे थे चाहे वो हज़ारों करोड़ के उनके लिए बनने वाले शानदार घर हों या उनके चलने उड़ने के लिए करोड़ो की गाड़ियां और हवाई जहाज़। और ये कट्टर इसी बात से खुश है जो उसके दिमाग मे अच्छे से बैठा दी गयी है कि अगर तू कट्टर है तो समझ तू सौभाग्यशाली है। हाय रे निरीह मूर्ख।

ये शब्द कट्टर कहाँ से आता है अगर इसके थोड़ा पीछे जाऊं तो कुछ समय पहले कट्टर मुसलमान शब्द हर जगह सुनाई देता था और आज अगर में सही हूँ तो जैसे ही ये शब्द कानों में पड़ता है।कट्टर मुसलमान! तो आंखों के सामने अचानक से ओसामा बिन लादेन या हाफिज सईद जैसे आतंकवादियों की शक्ल दिमाग़ में आ जाती है।

अब लॉजिक है कि जब मुसलमान कट्टर हो सकता है तो फिर दूसरे धर्म के लोग कट्टर क्यों नहीं हो सकते बिल्कुल हो सकते हैं लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा है कि जो मुसलमान कट्टर हुए वो आज कहाँ हैं? उनके परिवार किस हाल में हैं? उनकी मां बहनें ब कहाँ हैं? किस हाल में जीवन यापन कर रही हैं।

कट्टर बनाकर उनका उन जीवन ही नष्ट कर दिया गया। जिन देशों को अपनी कट् या कहें कि इन कट्टर लोगों ने दुनिया को ये संदेश दे दिया है कि अगर हम कट्टर हैं तो उसमें दूसरे किसी धर्म के लिए कोई जगह नहीं है।
सच्चाई यही है कि जब एक व्यक्ति कट्टर शब्द लेकर घर से निकलता है तब वो दूसरे धर्मों के दरवाजों को बंद करके निकल रहा होता है। उसको केवल उसकी कट्टरता और उसका धर्म ही दिखाई देता है और फिर यही नेत्रहीनता उससे वो सब करवा देती है जो न उसके धर्म में है और न ही वो कार्य उसको किसी जन्नत या स्वर्ग में लेकर जाएगा।

ये कट्टरता कभी किसी दोस्त के हाथों उसके दोस्त की पीठ में छुरा घोंपवा देती है कभी किसी पुराने अपने को केवल उसके खाने पर घसीट कर मरवा देती है कभी किसी बच्चे को एक ट्रेन में चाकुओं से गुदवा देती है और भीड़ उसकी उस निर्मम हत्या पर ताली बजाती हुई दिखाई देती है।
कोई दलित जब अपने सम्मान को सेलिब्रेट करता है तो भीम कोरेगांव करवा देती है, यही कट्टरता किसी छोटी बच्ची के बलात्कारी को बचाने के लिए भीड़ तैयार करवा देती है। अगर ऐसा ही देश और ऐसा ही समाज चाहिए तो कोई बुरी बात नहीं है जल्दी ही जब लोग आंख के बदले आंख मांगने लगेंगे तो वो दिन दूर नहीं जब चारों और केवल अक्ल के ही नहीं आंखों के अंधों की भी भीड़ दिखाई देगी जिसका मकसद केवल दूसरे की आंख निकालना ही होगा।
अगर कट्टर होना इतना ही सौभाग्यशाली होता तो नाज़ी तानाशाह हिटलर भी सौभाग्यशाली होता, ओसामा बिन लादेन भी खुद को कट्टर मुसलमान कहता था क्या किसी को लगता है कि होलोकॉस्ट, 9/11 जैसी इतिहास को रक्तरंजित करने वाली घटनाएं गर्व करने लायक हैं?
मुसोलिनी, चंगेज़ खान एवं और भी बहुत सारे नाम जो स्वयं को कट्टर कहते थे, उन्होंने क्या किया ये किसी से छुपा नहीं है।
क्या केवल धर्म ही वो थ्योरी है जिसके लिए आप कट्टर हैं क्या कभी कोई कट्टर इन्सान नहीं बन सकता क्या कोई कट्टर मददगार नहीं बन सकता। जिसके दिल मे दूसरे लोगों के लिए बस मोहब्बत हो और हर समय उनकी मदद करने का जज़्बा हो, बिना ये जाने कि वो किस जगह, किस धर्म, किस जाति, और किस जगह से सम्बंध रखता है।
कभी कट्टर हिन्दू, मुसलमान, सिख, या ईसाई बनने से पहले कुछ क्षणों के लिए ही सही कट्टर इंसान बनकर ज़रूर देखें। एक बार किसी टूटे हुए दिल पर हाथ रखकर तो देखें बहुत शांति मिलती है किसी को अपने हिस्से की ज़रा सी खुशी देकर देखें दुनिया जगमगा उठेगी, किसी की मुस्कुराहट और आपके लिए उसकी आंखों में पानी की चमक, और डबडबाती मोहब्बत आपकी कट्टरता को अंधा कर देगी और मुझे पूरा विश्वास है कि आप खुद को कट्टर इंसान कहलाना अधिक पसंद करेंगे।

ये सदैव याद रखिये जिस वक्त अंध भक्ति अपनी चरमसीमा पर होगी तो वो लोग पैगम्बरों को भी नहीं छोड़ेंगे उनको भी पत्थर मारे जाएंगे, सीता माता को भी अग्निपरीक्षा देनी पड़ेगी और प्रभु यीशु को भी सूली पर चढ़ा दिया जाएगा।in

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Bolnatohai

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