सहसवान नगर पालिका अपने मनमाने रवैये और अनियमितताओं के लिए मशहूर होती जा रही है। कस्बे के लोगों का कहना है कि किसी की कोई शिकायत हो तो उसपर कोई अमल नहीं होता। लोगों से बुरा बर्ताव किया जाता है। चेयरमैन कभी नगर पालिका में मिलते ही नहीं हैं। लोगों के साथ साथ नगर पालिका के कर्मचारियों को भी दिन भर उनके निवास के चक्कर लगाने पड़ते हैं। अगर उनके निवास पर जाओ तो घंटों बैठकर बिना मिले वापस आना पड़ता है।
कोरोना काल में कस्बे के लोगों ने नगर पालिका पर सेनिटाइजर के नाम पर धांधली के आरोप लगाये थे। उसके बाद मुहीउद्दीन पुर की पुलिया को भी तोड़ दिया गया। जो कि एक साल से ज़्यादा होने पर भी आज तक नहीं बनी है। स्कूल के बच्चे, बूढ़े, महिलाएं जंगलों से होकर अंदर कस्बे में जा पाते थे। तब लोगों ने मिट्टी डालकर निकलने का रास्ता तैयार किया। वो सड़क आज तक तैयार नहीं हुई है। लेकिन मोहल्ला क़ाज़ी में एक सड़क। जो अभी कुछ दिन पहले बनी थी उसको बिना टेंडर के उखाड़कर दोबारा बना दिया गया। लोगों का तो ये भी कहना है कि। अगर ठीक से जांच हो जाये तो ऐसी कई सड़कें निकलेंगी। जो पहले से ही बनी हुईं थीं। और दोबारा बनाकर। या थोड़ी बनाकर ज़्यादा दिखा दिया गया। या बनाई ही नहीं गईं। और उनके पेमेंट ठेकेदारों द्वारा निकाल लिए गए।
ताजा मामला सहसवान के बीचो बीच मोहल्ला नसरुल्लागंज स्थित सराय की भूमि को लेकर है। नगर पालिका सराय को अपनी मिल्कियत बताती है। जबकि मोहल्ला नसरुल्लागंज में रहने वाले भटियारा जाति के लोग उसको अपना बताते हैं। उनका उस पर कब्ज़ा भी है। लेकिन नगर पालिका वहां शॉपिंग कांपलेक्स बनाना चाहती है। इसी बात को लेकर दोनों पक्ष न्यायालय भी गए। और भटियारा जाति का प्रार्थना पत्र न्यायालय द्वारा स्वीकार भी किया जा चुका है।
नगर पालिका एक शौचालय का निर्माण वहां करवा चुकी है। इसलिए उस भूमि को अपना बता रही है। जबकि भटियारा जाति के लोगों और उनके चौधरी मोहम्मद यूसुफ और सदर भूरे व महमूद आदि का कहना है। कि 10 वर्ष पूर्व मौजूदा चेयरमैन के चाचा स्वर्गीय मीर यूसुफ अली जब नगर पालिका में चेयरमैन थे। तब वो एक शादी समारोह में इसी सराय में आये थे। तब हमारे लोगों ने उनसे मांग की थी कि जब हम यहां कोई समारोह करते हैं। तो शौचालय की बहुत दिक्कत होती है। आपसे गुज़ारिश है कि आप यहां शौचालय बनवा दें। हम सब आपका ही चुनाव लड़ाते हैं। इससे यहां लोगों में आपकी लोकप्रियता और भी बढ़ जाएगी। उस समय उन्होंने शौचालय बनाने का वादा किया था। लेकिन उसके बाद वो चेयरमैन का चुनाव हार गए।
अब 4 साल पहले उन्होंने स्वयं चुनाव न लड़कर अपने भतीजे मौजूदा चेयरमैन मीर हादी अली को चुनाव लड़ाया। और वो जीत गए। हम सबने भी उनका चुनाव ज़ोर शोर से लड़ाया। जब यहां शौचालय का निर्माण कार्य शुरू हुआ। हम सब लोगों को लगा कि मौजूदा चेयरमैन अपने चाचा का किया हुआ वादा पूरा कर रहे हैं। लेकिन हम ये नहीं जानते थे कि उनकी नज़र इस शौचालय की आड़ में पूरी भूमि हड़पने की है। हमें इस बात का पता तब लगा। जब चेयरमैन ने सभासदों को सहमत करके सराय में शॉपिंग कॉम्प्लेक्स का प्रस्ताव भी पारित करा दिया गया। अब ये सहमति किस प्रकार हुई थी ये चेयरमैन और सभासद ही बेहतर बता सकते हैं। जबकि हमारे पास 1935 के कागज़ मौजूद हैं। जिसमें ये सारे हमारे परदादा के नाम दर्ज हैं।
जब हमें ये पता लगा तो हम क्या करते। हम गरीब मजदूर लोग हैं। हमारे पास सिवाय न्यायालय की शरण में जाने के कोई दूसरा रास्ता नहीं था। और न्यायालय ने हमारे प्रार्थना पत्र को स्वीकार भी कर लिया है। जब हमने नगर पालिका का जो हलफनामा अधिशासी अधिकारी की ओर से न्यायालय में लगा है उसकी कॉपी ली। तो हम ये जानकर आश्चर्यचकित रह गए कि नगर पालिका तो हमारी जाति को ही नहीं मानती। वो तो हमारे वजूद का ही इनकार कर रही है। उसका कहना है कि भटियारा नाम का कोई समाज ही नहीं है। जबकि केवल बदायूँ में ही हमारी आबादी लगभग एक लाख। और प्रदेश में लगभग 40 लाख है। बाकी पूरे देश और दुनिया की बात अलग ही है। सराय की भूमि हड़पने के चक्कर में नगर पालिका तो हमें हमारी ही जाति से बेदखल करने पर तुली हुई है। अधिशासी अधिकारी ही मेहरबानी करके बताएं। अगर हम भटियारा जाति के नहीं हैं तो हम कौन हैं। ये हमें कौन सी जाति का प्रमाण पत्र देंगे। हमने जब जातियों की लिस्ट केंद्र सरकार से मांगी। तो उसमें भटियारा जाति दर्ज भी है । एक ज़िम्मेदार पद पर बैठा हुआ व्यक्ति इस प्रकार की बिना जानकारी की उलजुलूल बातें आखिर कैसे कर सकता है? केवल बदायूँ में लगभग 20 सराय हैं। जिनपर हमारी ही जाति का कब्ज़ा है। और उसमें सबके घर भी बने हुए हैं। हम लोगों ने इसमे घर न बनाकर। इसको समारोह आदि के लिए छोड़कर आसपास अपने घर बना लिए हैं। लेकिन ये नहीं पता था कि संपत्ति की कीमतें बढ़ने के बाद इस पर भी लोगों की बुरी नज़र पड़ जाएगी।
जब हमारी टीम ने सराय का इतिहास खंगाला। तो पता लगा कि जिस प्रकार से आजकल होटल हैं। और उसमें जो देखभाल के लिए स्टाफ होता है। उसी प्रकार से पहले राहगीरों और व्यापारियों के ठहरने के लिए सराय का निर्माण होता था। और भटियारा जाति ही उसका रखरखाव व, राहगीरों और व्यापारियों का सेवा सत्कार करती थी जो उसके बदले वो उन्हें कुछ धनराशि तोहफे में दे जाते थे। जिससे उनके खर्चे आदि होते थे।
जब हमने इसकी पड़ताल की। तो इसी से जुड़ा नगर पालिका का एक और खेल और चोंकाने वाला भ्रष्टाचार सामने आया। हलफनामे में जिस शौचालय का निर्माण कार्य पूरा दिखाया गया है। और अधिशासी अधिकारी ने जो हलफनामा ईश्वर की शपथ खाकर दाखिल किया है। वहां निर्माण कार्य पूरा हुआ ही नहीं है। और जब अधिशासी अधिकारी कह रहे हैं कि निर्माण कार्य पूरा हो चुका है। तो पेमेंट भी निकल ही गया होगा। पेमेंट निकला है या नहीं इसके बारे में जब अधिशासी अधिकारी से बात की गई। तो उन्होंने बताया कि वो किसी काम से अभी दो दिन के लिए दिल्ली गए हुए हैं आकर बात करेंगे।
नगर पालिका सहसवान का ये खेल देखकर लगता है। कि सराय की भूमि पर कब्जे की नीयत से सब कुछ जल्दी जल्दी हड़बड़ी में कर दिया गया। और ये भी नहीं सोचा कि इसमें वो उल्टा फंस जाएंगे। कस्बे में नगर पालिका के इस भ्रष्टाचार को लेकर तमाम तरह की चर्चा है।