शहादत याद है या भूल गए?

शहीद दिवस

भारत मे प्रत्येक वर्ष 23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सम्पूर्ण देश के लोग देश के लिए बलिदान देने वालों को याद करते हैं, और उनके सम्मान में इस दिन को मनाते हैं। वेसे तो भारत में शहीद दिवस साल में कई बार मनाया जाता है।

उसका कारण है कि बहुत ऐसे दिन हैं जिस दिन भारत माता के सपूतों ने देश के लिए कुर्बानियां दीं और वो दिन यादगार बना गए उन्हीं दिनों को उनकी उन्हीं कुर्बानियों और बलिदान को याद करने के लिए उनके  सम्मान में मनाया जाता है।

भारत में कब शहीद दिवस मनाया जाता है?

शहीद दिवस मनाए जाने वाले दिनों में प्रमुख रूप से प्रत्येक वर्ष 30 जनवरी, 23 मार्च, 21 अक्टूबर, 17 नवम्बर और 19 नवम्बर है। देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथी के रूप में 30 जनवरी को शहीद दिवस में मनाया जाता है।

वहीं 23 मार्च को जो शहीद मनाया जाता है उसका कारण है कि इस दिन 23 मार्च को हिन्दुतान के वीर सपूत और क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दी गयी थी।

वीर सपूतों की याद में शहीद दिवस

शहीद दिवस वर्ष के और भी दिनों में प्रमुख रूप से 21 अक्टूबर के दिन भी मनाया जाता है। सन 1959 में केन्द्रीय पुलिस बल के जवान लद्दाख में शहीद हुए थे। पुलिस की ओर से 21 अक्टूबर को शहीद दिवस मनाया जाता है।

इसके अलावा 17 नवंबर को लाला लाजपत राय की स्मृति में भी शहीद दिवस मनाया जाता है और रानी लक्ष्मीबाई के जन्मदिन के दिन 19 नवंबर को भी देश में शहीद दिवस मनाया जाता है।

23 मार्च के दिन दी गयी थी भारत माता के वीरों को फांसी।

23 मार्च का शहीद दिवस देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले देश के वीर सपूत भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की शहादत के रूप में मनाया जाता है। आज भी जब भारत के क्रांतिकारियों के किस्से सुनाए जाते हैं तो सबसे पहले इन्हीं तीन सूरमाओं का नाम सबसे पहले लिया जाता है। वेसे तो लाखों वीर सपूतों ने मां भारती के लिए अपने प्राणों की आहुति दी, मगर ये 3 नाम भारत के के क्रांतिकारियों के चेहरा बनकर हमेशा के लिए अमर हो गए। 23 मार्च के दिन माँ भारती के इन तीन बेटों के साथ उन सभी शहीदों को याद करके देशवासी उनके सम्मान में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

अंग्रेजों का घमंड चूर किया था।

इन वीरों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज बुलंद करते हुए “पब्लिक सेफ्टी बिल” के विरोध में सेंट्रल असेंबली में बम फेंके थे। हालांकि वो केवल अंग्रेज़ी हुकूमत को डराने के लिए किया गया था। किसी भी व्यक्ति को नुकसान पहुंचाना उन क्रांतिकारियों का मकसद नहीं था।

वो वीर केवल यही चाहते थे कि अंग्रेजों की हुकूमत को हिला सकें इसी कारण ये हमला अंग्रेज़ी हुकूमत के घमंड को चकनाचूर करने के लिए किया गया था। और ऐसा हुआ भी, अंग्रेसी अखबार इन क्रांतिकारियों की खबरों से भर गए 25 मार्च सन 1931 को “द ट्रिब्यूनल” ने भगत सिंह को फ्रंट पेज पर छापा अंग्रेजों के घमंड को इन वीरों ने चकनाचूर कर दिया था। इसी कारण इस हमले के बाद उनको गिरफ्तार कर लिया गया और उस आवाज़ को दबाने के लिए 23 मार्च 1931 को उन्हें फांसी दे दी गयी।

नागरिक तो हम बन गए लेकिन नागरिक बोध नहीं निभा पाए

हमने और देश के लोगों ने इस आज़ादी के बदले बहुत कुछ खोया। लाखों लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी और उसके बदले हमे ये आज़ादी तोहफे में दी। लेकिन बहुत सारे प्रश्न हैं जो मन मे आते हैं।

क्या वाकई हमने इस मिली हुई आज़ादी का सम्मान किया है?                                                         जिन देशवासियों और उनकी आने वाली नस्लों के लिए ये वीर हंसते हंसते फांसी के फंदों पर झूल गए, क्या हम लोगों ने इस बलिदान का सम्मान किया? हम अंग्रेजों से तो आज़ाद अवश्य हो गए लेकिन आज भी जाति, धर्म, इर्ष्या, घृणा के ग़ुलाम हैं आपसी नफरत और भेद की जंजीरों में जकड़े हुए हैं। आज हम अपने ही देेश के नागरिकों को अपना मानने को तैयार नहीं हैं। भाई भाई नहीं रहा और नागरिक नागरिक नहीं रहा।

बात बात पर देश के ही नागरिकों को दूसरे देशों में भेजने की बात करते हैं। वो याद ही नहीं रहा जब अशफ़ाक़ उल्ला खां और राम प्रसाद बिस्मिल अपने देश की स्वतंत्रता के लिए हाथ मे हाथ डालकर मौत और हुकूमत की आंखों में आंखें डालकर डटकर खड़े हुए थे।

हमारी देश के प्रति ज़िम्मेदारी

एक नागरिक से बड़ा होता है नागरिक बोध वो ज़िम्मेदारी जो एक नागरिक के तौर पर आपको देश के प्रति मिलती है। प्रत्येक व्यक्ति अपने अंदर झांक सकता है कि वो कितना अच्छा नागरिक है। आज के दौर में जो सबसे बड़ा नुकसान हुआ है वो यही है कि देश के नागरिकों के अंदर नागरिक बोध नहीं है देश के और देश के नागरिकों के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को लगभग सबने भुला दिया है। एक नागरिक के लिए उसका स्वयं का वजूद ही मायने रख रहा है। एक अच्छी नौकरी या अच्छा व्यवसाय, एक सुंदर सी पत्नी, बच्चे एक आलीशान मकान, गाड़ी इससे अधिक वो कुछ सोच ही नहीं रहा, कभी उसके मन मे भी नहीं आता कि अगर यही इच्छाएं इन क्रांतिकारियों की भी होतीं तो ये देश कैसे आज़ाद हो पाता, कभी अपने मखमल के ब्रांडेड गद्दों पर लेटे हुए हमने सोचा कि आखिर ऐसा कौन सा बोध था जो इन्हें चैन से सोने तक नहीं देता था। क्यों दिन रात अपनी जान हथेली पर रखकर भारत माता के ये सपूत अपनी आजादी के ख्वाब देखा करते थे। ये न हिन्दू थे न मुस्लिम और न सिख न ईसाई ये थे बस इस देश के नागरिक और नागरिक बोध का उनका एहसास।

 

बहुत से लोगों को ये तक नहीं पता होगा कि भगतसिंह को फांसी लगने के बाद असेम्बली बम ब्लास्ट के उनके साथी बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास की काला पानी की सज़ा हुई थी। आज़ादी के बाद उनकी रिहाई हुई, जहां इन्होंने अपना जीवन अभावों में गुज़ारा और ठीक से इलाज भी नहीं मिला वहीं इनके विरुद्ध गवाही देने वाले शोभा सिंह और शादीलाल सैंकड़ों एकड़ ज़मीन और बहुत सारा धन अपनी गद्दारी के बदले लेकर राज कर रहे थे लेकिन बटुकेश्वर दत्त ने कभी शिकायत तक नहीं की क्योंकि उनका जो नागरिक बोध और सपना था वो केवल भारत की आज़ादी था जो मिल चुकी थी, शायद यही वो बोध था जिसके कारण शहीद भगतसिंह की पूजनीय माता जी अंतिम दिनों में भी बटुकेश्वर दत्त से मिलती रहीं।

केवल देश का वोटर कार्ड और आधार कार्ड आपको नागरिक नहीं बनाता बल्कि आपको नागरिक बनाता है, देश के प्रति आपका प्रेम, उसकी नीतियों का सम्मान और देश व उसकी गरिमा की रक्षा। आज हम नागरिक तो बन गए लेकिन नागरिक बोध का निर्वहन नहीं कर पाए।

देश के लिए प्रण करना होगा।

आज देश के युवाओं को आगे आकर इस सम्प्रदायिकता, नफरत, जातिवाद, रंगभेद और के विरुद्ध आवाज उठानी होगी और जिन लोगों ने देश के लिए अपने प्राणों की आहुतियां दीं उनके उस सपने को साकार करना होगा जो उन्होंने देश की अखंडता और संप्रभुता और आपसी भाईचारे के लिए देखा था।

हर एक को ये प्रण करना होगा कि आपसी मनमुटाव और रंजिशें भूलकर हम देश की प्रगति के लिए अग्रसर हों संसार मे उसकी प्रतिष्ठा बढ़ाएं । और इन शहीदों को याद करके इस देश की आज़ादी को सही अर्थों में उल्लेखित करें यही उन शहीदों के लिए सबसे बड़ा सम्मान होगा और जिस देश का सपना उन्होंने देखा था शायद वैसा देश हम बना पाएंगे।

आपको ये ब्लॉग कैसा लगा आपसे अनुरोध है अपनी राय अवश्य दें या इससे संबंधित आपके जो भी प्रश्न हों आप कमेंट बॉक्स में जाकर पूछ सकते हैं। धन्यवाद।

 

Bolnatohai

Bolnatohai

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *