बिना अज़ान और बिना आरती का आध्यात्मिक भारत

भारत की संसार में पहचान

सम्पूर्ण संसार मे भारत की पहचान एक ऐसे देश की है जिसकी आत्मा है, उसका आध्यत्मिक होना। भारत साधुओं, संतों ऋषियों, मुनियों और सूफी, संतों का देश है। इस देश में बहुत बड़े बड़े ऋषि मुनि और सूफी संत हुए हैं, जिनका इस देश की संस्कृति पर अत्यधिक प्रभाव है।

दुनिया भर से लोग सुकून और शांति की तलाश में भारत आते हैं। मंदिरों, मस्जिदों और मजारों व दरगाहों, गुरुद्वारों और खूबसूरत चर्चों का एक अलग ही आध्यात्मिक संसार है,

शायद उसी चुम्बकीय प्रभाव से दुनिया भर के लोग अध्यात्म की खोज में यहां खिंचे चले आते हैं। बड़े बड़े आध्यात्मिक गुरुओं ने वैश्विक पटल पर भारतीय आध्यात्मिकता को प्रदर्शित किया है, वो गुरु आज पूरे संसार में अपनी एक अति विशिष्ट पहचान रखते हैं और दुनिया उन्हें एक सेलेब्रिटी की तरह मानती है। बड़े बड़े मुस्लिम सूफी संतों ने भी भारत को दुनिया में एक अलग पहचान दी है।

मथुरा, वृंदावन, माता वैष्णों देवी, केदारनाथ से लेकर स्वर्ण मंदिर, दरगाह हज़रत बल, ख़्वाजा मोइनुद्दीन दरगाह, हज़रत निज़ामुद्दीन, जामा मस्जिद और हाजी अली हो, पंजिम के सुंदर चर्च हों या दक्षिण भारत के मंदिरों में दिखाई देने वाली महान मूर्त विरासत हो, हज़ारों ऐसे स्थान हैं, जिन्हें देखने के लिए पूरी दुनिया खिंची चली आती है। भारत में कई ऐसे बड़े शहर हैं जिनमें मथुरा, हरिद्वार, वाराणसी, अजमेर, अमृतसर, बोधगया, रामेश्वरम, तिरुपति प्रमुख हैं, जिनकी संसार में पहचान और आर्थिक धुरी अध्यात्म ही है।

अटूट श्रद्धा का एहसास ही भारत को दूसरे देशों से अलग खड़ा करता है। अध्यात्म ही भारत की सबसे बड़ी दौलत है और यही अध्यात्म हमारी सभ्यता और संस्कृति की महत्वपूर्ण अवस्था है। भारतीय योग ने आज सम्पूर्ण संसार में अपना स्थान बनाया है, पूरी दुनिया आज जिस योगा की दीवानी है वो इसी अध्यात्म का ही एक स्वरूप है।

भगवान बुद्ध को मोक्ष की प्राप्ति यहीं भारत में हुई। आज संसार में बौद्ध धर्म को मानने वाले करोड़ों अनुयायियों के लिए भी भारत एक तीर्थ स्थल है।

बोधगया बिहार राज्य के गया ज़िले में स्थित एक शहर है, जिसका गहरा ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है। मान्यता है कि यहाँ महात्मा बुद्ध ने बोधि वृक्ष के तले ही निर्वाण प्राप्त किया था।

एक और प्राचीन धर्म अगर हम जैन धर्म की बात करें तो जैन धर्म भी दुनिया के सबसे प्राचीन धर्मों में गिना जाता है, जैन धर्म को श्रमणों का धर्म कहा जाता है। जैन धर्म का मूल भारत की प्राचीन परंपराओं में रहा है। आर्यों के काल में ऋषभदेव और अरिष्टनेमि को लेकर जैन धर्म की परंपरा का वर्णन भी मिलता है। महाभारतकाल में इस धर्म के प्रमुख नेमिनाथ थे। भारत जैन धर्म का भी तीर्थस्थल है और यहां जैन धर्म की दोनों पृथक परंपराओं श्वेताम्बर और दिगम्बर के सैंकड़ों मठ हैं जिनके दर्शन को संसार में जैन धर्म के लाखों अनुयायी देखने आते है। जैन धर्म के लोगों का भारतीय संस्कृति, सभ्यता और समाज को विकसित करने में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

भारत के शीर्ष पर स्थित हिमालय पर्वत का आध्यात्मिक संसार में एक अलग ही महत्व है, मान्यता है कि भारतीय आराध्य भगवान शिव का निवास इस हिमालय पर्वत के कैलाश शिखर पर है। अगर बौद्ध धर्म की दृष्टि से देखें तो हिमालय पर्वत कई बौद्ध भिक्षुओं का घर है। यह मंदिरों, स्तूपों, प्रार्थना झंडों, प्रार्थना पहियों और बौद्ध धर्म के अन्य पहलुओं से भरा हुआ है। हिमालय में कई बौद्ध स्मारक, मंदिर, मूर्तियाँ और धार्मिक चित्र हैं, जो स्थानीय लोगों और पर्यटकों सहित सभी को आकर्षित करते हैं।

आखिर अध्यात्म है क्या?

भारत एक आध्यात्मिक देश तो है, लेकिन आध्यात्मिक होने का मतलब क्या है? ये जानना बेहद ज़रूरी है।
जो भौतिक से परे है, उसका अनुभव कर पाना ही अध्यात्म है। अगर आप सृष्टि के सभी प्राणियों में भी उसी ईश्वर और अल्लाह के अंश को देखते हैं, जो आपमें है, तो आप आध्यात्मिक हैं। अगर आपको ये ज्ञात है कि आपके दुख, आपके सुख, आपकी स्थिति पर कोई शक्ति है और जो हो रहा है उसका कोई और जिम्मेदार नहीं है, बल्कि आप खुद इसके निर्माता हैं, तो आप आध्यात्मिक मार्ग पर हैं। आप जो भी कार्य करते हैं, आध्यात्मिक होने का मतलब है, जो भौतिक से परे है, उसका अनुभव कर पाना। अगर आप सृष्टि के सभी प्राणियों में भी उसी परम-सत्ता के अंश को देखते हैं, जो आपमें है, तो आप आध्यात्मिक हैं। आप जो भी कार्य करते हैं, अगर उसमें केवल आपका हित न हो कर, सभी की भलाई निहित है, तो आप आध्यात्मिक हैं। अगर आप अपने अहंकार, क्रोध, नाराजगी, लालच, ईर्ष्या, और पूर्वाग्रहों से पार पा चुके हैं, तो आप आध्यात्मिक हैं। बाहरी परिस्थितियां चाहे अनुकूल हों या प्रतिकूल हों, आपको उससे अंतर नहीं पड़ता हो और अगर आप अंदर से हमेशा प्रसन्न और आनन्द में रहते हैं, तो आप आध्यात्मिक हैं। अगर आपको इस सृष्टि की विशालता के सामने खुद के तुच्छ वुजूद का एहसास बना रहता है तो आप आध्यात्मिक हैं। आपके पास जो कुछ भी है, उसके लिए अगर आप अपने ईश्वर के प्रति कृतज्ञता महसूस करते हैं तो आप आध्यात्मिकता हैं। अगर आपमें केवल अपने परिजनों के प्रति ही नहीं, बल्कि सभी लोगों के लिए प्रेम उमड़ता है, तो आप आध्यात्मिक हैं। आपके द्वारा किये गए किसी भी कार्य में केवल आपका हित न हो कर सभी की भलाई निहित है, तो आप आध्यात्मिक हैं।

भारत की सांस्कृतिक विरासत

भारत की सांस्‍कृतिक विरासत लगभग 5000 साल पुरानी संस्‍कृति एवं सभ्‍यता से चली आ रही है। डा. ए एल बाशम ने ”भारत की सांस्‍कृतिक विरासत’’ नामक अपनी प्रमाणिक पुस्‍तक में लिखा है कि ” सभ्‍यता के चार मुख्‍य उद्गम होते हैं जो पूरब से पश्चिम की ओर प्रस्‍थान करने वाले चीन, भारत, फर्टाइल क्रिसेंट तथा भूमध्‍य रेखा, विशेष रूप से ग्रीक और इटली हैं, परंतु भारत अधिक श्रेय का हकदार है क्‍योंकि भारत ने अधिकांश एशिया के धार्मिक जीवन को गहन रूप से प्रभावित किया है। भारत ने प्रत्‍यक्ष या परोक्ष रूप से विश्‍व के अन्‍य भागों पर भी अपना प्रभाव छोड़ा है”। यहां एक बात और भी महत्‍वपूर्ण है कि हमारी महान नदियों अर्थात गंगा और सिंधु की घाटियों में जो सभ्‍यता विकसित हुई उसने हिमालय की वजह से भौगोलिक क्षेत्र को सीमांकित तो किया परंतु कभी भी पृथक सभ्‍यता नहीं रही। यह धारणा कि यूरोपीय अध्‍ययन, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के प्रभाव ने पहले पूरब को परिवर्तित नहीं किया, सदियों से इस धारणा को अस्‍वीकार किया जा सकता है तथा किया भी जाना चाहिए। भारतीय सभ्‍यता कभी स्थिर नहीं रही और हमेशा से गतिशील रही है। भूमि एवं समुद्री मार्गों से व्‍यापारी एवं उपनिवेशी भारत आए इसलिए कभी इसका पृथक्करण नहीं हुआ और शायद इसी वजह से सभ्‍यता के एक जटिल पैटर्न का विकास हुआ जो सांस्कृतिक परंपराओं में बहुत स्‍पष्‍ट रूप से प्रदर्शित हुआ है।

आज का भारत

अध्यात्म के बारे में अब तक हमने जो भी ऊपर लेख में पढ़ा उसके बाद हम सभी अपनी स्थिति का अनुमान लगा सकते हैं लेकिन जिस आध्यात्मिक भारत की बात हम करते हैं या जो भी पहचान है उस परिपेक्ष्य में जब हम आज का भारत देखते हैं तो वो बिल्कुल अलग दिखाई देता है। मंदिर और मस्जिदों की पहचान वाला देश आज अज़ानों और भजन, आरतियों पर प्रतिबंध लगाने वाला देश बन गया है। जिस देश की फ़िज़ा में कभी अज़ान, आरती और गुरुवाणी की ध्वनि गूंजती थी, मंदिर की सुंदर घंटियों की आवाज़ें गूंजती थीं, गुरुद्वारों के मद्धिम स्वर, मस्जिद से मीठी अज़ान आती थी, आज उनको ही रोकने के लिए सरकारें युद्धस्तर पर कार्य कर रही हैं। इन ध्वनियों का स्थान अब सरकार द्वारा भेजे जाने वाले आदेशों ने ले लिया है। सत्य तो ये है कि लोगों को इस सबसे कभी कोई दिक्कत ही नहीं थी वो तो भला हो राजनीति का जिसने इस अमृत रूपी संस्कृति में साम्प्रदायिकता का विष घोल दिया।

मैंने स्वयं बहुत सारे हिन्दू धर्म के मानने वालों से पूछा कि उन्हें अज़ान से क्या दिक्कत है? और यही सवाल इस्लाम मानने वालों से भी पूछा कि उन्हें मंदिर की घंटियों से क्या दिक्कत है? दोनों ही समुदायों का एक ही जवाब था कि उन्हें इससे कोई भी समस्या नहीं है। कई लोगों ने तो यहां तक कहा कि हम बचपन से ये आवाज़ें सुनते आ रहे हैं और हमारे कानों को ये सुनने की आदत है। मैंने जब अगला सवाल किया कि फिर वो कौन लोग हैं जो इस भारत को बदलने की कोशिश कर रहे हैं? सबका इस बार भी एक ही जवाब था कि देश की राजनीति ने लोगों का स्वाद खराब कर दिया है और यही नेता सत्ता पाने के लिए ये सब कर रहे हैं और धर्मों और जातियों के नाम पर एक दूसरे को आपस में लड़ा रहे हैं।

इसी लेख को लिखते हुए एक ऐसी घटना भी हुई है जिसको यहां इस परिपेक्ष्य में रखना अत्यंत आवश्यक प्रतीत हुआ  मेरी एक मुस्लिम दोस्त जो दिल्ली एक प्रतिष्ठित स्कूल में टीचर हैं, उन्होंने आज मुझे एक वीडियो का लिंक भेजकर उसको देखने को कहा, जो उन्हें एक छात्र की मां ने भेजा था और ये पूछा था कि क्या ये सच है ये वीडियो इस्लाम के बारे में आपत्तिजनक था। मैंने अपने दोस्त से कहा कि जिस माँ को उसके बच्चे की टीचर से ये पूछना चाहिए था कि उनका बच्चा पढ़ाई में कैसा है दूसरे बच्चों के साथ उसका व्यवहार कैसा है वो माँ दूसरे मज़हब के बारे में जिससे उसका कोई सरोकार भी नहीं है आपत्तिजनक प्रश्न कर रही है। वो जिस मुस्लिम महिला को जानती है वो उसके बच्चे की टीचर है उसको इससे अंतर ही नहीं कि उस टीचर के मन पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा। ये निराशाजनक है और इससे ये सहज अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि आखिर हम जा किस ओर रहे हैं।

वर्तमान परिस्थितियों से सांस्कृतिक के साथ आर्थिक नुकसान भी होंगे

आखिर संसार को हम क्या संदेश देने जा रहे हैं ये बेहद चिंता का विषय है। हमारी इस धरोहर के सांस्कृतिक मूल्य को हम अगर एक ओर रख भी दें तो क्या भविष्य में होने वाले आर्थिक मूल्यों और नुकसानों से भी मुंह मोड़ लेंगे। कभी हमने ये सोचा है कि दुनिया में किन देशों से यहां सबसे अधिक पर्यटक आते हैं तो आप पाएंगे कि सबसे अधिक लोग ऐसे देशों से आते हैं जो भारत के मुकाबले बेहद ठंडे देश हैं और भारत की जलवायु के हिसाब से उनको यहां ठहरने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है उसके बावजूद भी वो जिस भारत को देखने के लिए दुनियाभर से यहां आते हैं, ऐसे देश जहां जाना, उनकी सुंदरता देखना, उनको एक्स्प्लोर करना अधिकतर भारतीयों का सपना होता है वहां के नागरिक उस सुंदरता को छोड़कर भारत आते हैं, कभी सोचा है कि वो लोग यहां क्या देखने आते हैं? ऐसा यहां क्या है जो वहां नहीं है? ये वही आध्यात्मिक भारत है और शांति है जिसको महसूस करने व यहां आते हैं लेकिन अफ़सोस हम स्वयं ही अपनी उस धरोहर को नष्ट कर रहे हैं। एक भारतीय होने एक नाते क्या ये अजीब नहीं लगता कि फ़िज़ाओं से अज़ानें और घंटियों के स्वर गायब कर दिए गए हैं। ये कौन सा भारत है कभी सोचा है।

अंतरराष्ट्रीय पटल पर भारत की छवि को नुकसान

इसमें कोई संदेह नहीं कि देश में साम्प्रदायिक नफरत, हिंसा, राजनीति के गिरते स्तर और बात बात पर झगड़ने की प्रवृत्ति ने सबसे अधिक नुकसान भारत के इसी स्वरूप का किया है और उस आध्यात्मिक भारत की आत्मा पर आघात हुआ है। जिन अलग अलग धर्मों और सर्व धर्म समभाव की विशेषता से भारत को संसार के सभी देशों में एक विशिष्ट पहचान मिली थी उस छवि को बेहद नुकसान पहुंचा है। अगर यही हाल रहा और स्थितियों को जल्दी नहीं सुधारा गया तो वो दिन दूर नहीं, जब संसार के प्रत्येक देश से ये एडवाइजरी जारी होगी कि पर्यटक भारत से दूरी बनाकर रखें और कोई नागरिक भी ये नहीं चाहेगा कि वो किसी भी मुश्किल और विषम परिस्थितियों में स्वयं को फंसा हुआ पाए।कुछ दिन पूर्व भाजपा की एक प्रवक्ता ने एक न्यूज चैनल पर इस्लाम धर्म के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब के बारे में अपमानजनक बातें कहीं जिसके बाद देश के अंदर तो हालात बिगड़े ही, वैश्विक स्तर पर भी भारत की छवि को गहरा आघात पहुंचा। सऊदी अरब और क़तर जैसे छोटे देश भारत को आंखें दिखाने लगे और खाड़ी देशों में भारतीय उत्पादों का बहिष्कार करने की भी मांगें उठीं और ये भी खबरें आईं कि कई देशों में हिन्दू समुदाय के लोगों को उनके मुस्लिम मालिकों ने नौकरी से निकाल दिया ये बहुत ही निराशाजनक था और उसके बाद डैमेज कंट्रोल के लिए बीजेपी को अपने दो राष्ट्रीय प्रवक्ताओं को पार्टी से निष्कासित करना पड़ा। ये धर्मांधता की लड़ाई भारत की छवि को लगातार नुकसान पहुंचा रही है।

सम्पूर्ण संसार ने जिस दृष्टि से भारत को देखा है या हमारी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पृष्ठभूमि के आधार पर एक भारतीय नागरिक के तौर पर जो विशेषताएं हमसे अपेक्षित की हैं वो हैं:-

  • अहिंसा

  • सत्य-व्यवहार

  • आत्म-नियंत्रण

  • कृतघ्नता और

  • आत्मीयता।

हर भारतीय को ये आत्मचिंतन करने की आवश्यकता है कि एक नागरिक के तौर पर क्या ये सारी विशेषताएं हमारे अंदर हैं?
या हमने स्वयं ही इन सब मूल्यों को त्यागकर अपने ही देश की आध्यात्मिक छवि को धूमिल किया है।

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Anwar Khan

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