अगर वक़्त नहीं हो तब भी इस ब्लॉग को ज़रूर पढ़िये हो सकता है कुछ ऐसा लिखा हो जो ज़िन्दगी में बदलाव ले आये जैसा कल मैंने एक बार फिर से महसूस किया है।
में अक्सर हर टॉपिक पर लिखता हूँ कभी सामाजिक कभी राजनीतिक कभी स्वास्थ्य से संबंधित जो महसूस करता हूँ उंगलियां मोबाइल और लेपटॉप के कीबोर्ड से खेलना शुरू कर देती हैं और वही फीलिंग ब्लॉग्स की शक्ल लेकर आपके सामने आ जाती है। लेकिन आज का टॉपिक बिल्कुल अलग है और शायद सबसे ज़्यादा ज़रूरी भी।
वो टॉपिक है ज़िन्दगी और उसकी ख्वाहिशें क्योंकि जो मैंने आज महसूस किया है वो पहले भी कई बार महसूस किया है शायद वही फीलिंग हमेशा कुछ नया और स्पेशल करने को मोटिवेट करती है। लेकिन आज कुछ ऐसा देखा कि लगा उस फीलिंग को शब्दों का सहारा दिया जाए।
ज़िन्दगी कभी कभी उन चीजों से रूबरू कराती है जो आपको कुछ अलग सोचने और करने की प्रेरणा देता है, और वो सब देखकर ज़िन्दगी बेमानी लगती है और फिर आप उसके मायने निकालने की और उस बेमानी सी ज़िन्दगी को मायने देने की कोशिश में लग जाते हैं यही वो लम्हा होता है जो आपसे कुछ स्पेशल और एक्स्ट्रा आर्डिनरी करवा देता है।
मुझे ऐसा लगता है पूरी दुनिया में बहुत कम लोग ऐसे होंगे या शायद बिल्कुल नहीं होंगे जो अपनी ज़िंदगी से संतुष्ट होंगे। हो सकता है कुछ लोग इस बात से सहमत न हों तो उसके लिए ब्लॉग आगे ज़रूर पढ़िए। अगर मेने ये बात कही है तो वो अनुभव भी की है। मैंने जितने लोगों से बात की है या जिनके करीब हूँ उनमें से कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसकी कोई अधूरी ख़्वाहिश न हो।
जो लोग मेरा ये ब्लॉग पढ़ रहे हैं या जो मेरी इस बात से सहमत नहीं हैं कि दुनिया में कोई संतुष्ट नहीं है वो अब अपने दिल पर हाथ रखकर पूरी ईमानदारी से कहें कि क्या वाकई उनकी कोई ख्वाहिश अधूरी नहीं है। मुझे नहीं लगता कि कोई ऐसा होगा मेरे एक दोस्त ने तो एक दिन कहा कि यार एक ख़्वाहिश ये है कि दोस्तों के साथ बाइक से लद्दाख जाऊं और ज़िन्दगी में थोड़ा रोमांच लाऊँ।
उम्र गुज़रती जाती है और ख्वाहिशें वहीं खड़ी रह जाती हैं कभी जिम्मेदारियां और कभी दुश्वारियाँ हमारी उन ख्वाहिशों के रास्ते मे खड़ी हो जाती हैं। हमे लगता है बाद में कर लेंगे क्योंकि हमारी आंखें तो हमें खुद को एकदम जवान और ज़िन्दगी से भरा हुआ महसूस करवाती हैं, जबकि सच ये है कि उम्र धीरे धीरे गुज़रती जाती है और उसके साथ केवल हमारी ख्वाहिशों को छोड़कर शरीर का प्रत्येक हिस्सा कमज़ोर पड़ता जाता है।
हमे ये एहसास भी नहीं हो पाता कि कब हमारे बाल सफेद हो गए कब उस चेहरे पर झुर्रियों ने अपना डेरा डाल दिया जिसको निहारने में हम घंटो लगा दिया करते थे। जिस शरीर पर हमें घमंड था वो कब झुकने लगा और जिन बाइसेप्स और सुगठित शरीर को आईने में देखकर हम अकड़ जाते थे कब उसका मांस लटकने लगा।
आज अचानक से ये सब महसूस करने का एक कारण है आज रास्ते पर अपने पुराने स्कूल के एक टीचर सर् से मुलाक़ात हुई। बेहद कमज़ोर शरीर सिर्फ सड़क को निहारते हुए चले जा रहे थे। मैंने रोककर अभिवादन किया पहचान नहीं पाए फिर पहचान करवाई उन्हें सब याद आया और शून्य हावभाव वाले चेहरे पर मुस्कुराहट फेल गई और खुश हो गए।
फिर पूछने लगे कि कहां हो क्या कर रहे हो आजकल? मेने सब कुछ बताया जब उन्हें पता लगा कि मैं लिखता भी हूँ तो हैरत करने लगे क्योंकि किसी को क्या मुझे खुद को अपने आप से कभी ये उम्मीद नहीं थी कि मैं कभी ज़िन्दगी में लेखक भी बन सकता हूँ।
काफी समय उनसे शिक्षा ली 1990 से 1995 तक उस स्कूल में रहा मुझे आज भी उनका लाइफस्टाइल याद है। सारे टीचर्स में से वो सबसे अलग तरह से रहते थे करीने से पहने हुए कपड़े, तेल पड़े हुए और हमेशा साथ में रहने वाली कंघी से बहुत अच्छे से संवरे हुए बाल, उनका गुस्सा, चुस्ती, फुर्ती, आंखों में चमक सारा कुछ अतीत आंखों के सामने आ गया।
हमेशा बड़े जिंदादिल अंदाज़ से अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के किस्से सुनाया करते थे। तब लगता था कि हम भी ये सब महसूस करेंगे लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए कभी AMU नहीं जा पाया। घर की उस समय बिगड़ती आर्थिक स्थिति ने ये इजाज़त ही नहीं दी। उस समय लगा घरवालों पर बोझ बनने से बेहतर है उनकी ज़िम्मेदारी उठाई जाए जो शायद अच्छे से निभा भी गया और अपनी उस ख़्वाहिश को ख़्वाहिश ही रहने दिया।
आज उनके वो किस्से याद आये तो वो अधूरी ख़्वाहिश भी याद आ गई। इसीलिए मैंने कहा कि शायद ही कोई ऐसा होगा जिसके अंदर कोई दबी हुई ख़्वाहिश न हो खैर आज उनका ये वाला रूप देखकर दिल को बहुत अफ़सोस हुआ। हाथों की खाल लटकी हुई थी, बेहद पतले हाथ, चेहरे पर झुर्रियां, आंखें में वो चमक भी नहीं थी, एक अलग ही व्यक्तित्व से आज मुलाक़ात हुई। फिर मेने उनसे विदा ली।
वो मुझे भले ही भूल गए हैं, हज़ारों बच्चे पढ़ते हैं कितने याद रहेंगे? वेसे भी मैं कोई ऐसा स्पेशल बच्चा भी नहीं था जो याद रहता, लेकिन मैं उन्हें कैसे भूल सकता हूँ और प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अध्यापक कुछेक ही होते हैं और कोई भी दुनिया में ऐसा व्यक्ति नहीं है जो अपने अध्यापकों को भूल जाता हो बचपन से लेकर जवानी की शिक्षा तक कोई भी ऐसा अध्यापक नहीं होता जिसे कोई भूल जाता हो।
मेरे सामने उनकी ज़िंदगी की चर्चा कई बार हो चुकी है। मेरे स्कूली शिक्षा के बाद इंटर कॉलेज जॉइन करने के बाद सुना था कि उनकी सरकारी नौकरी लग गई थी। उनकी शादी भी एक टीचर से ही हुई थी दोनों ने मिलकर बेहद शानदार कोठीनुमा अपना घर बनाया। ईश्वर ने उन्हें संतान सुख नहीं दिया ये भी अजीब बात है कि जिन लोगों का पूरा जीवन ही बच्चों के इर्द गिर्द और उन्हें नई दिशा देने में गुजरा उन्हें ही ईश्वर ने निःसंतान रखा।
उनसे मिलकर एक बात समझ आई, कि ज़िन्दगी के मायने बहुत ज़रूरी हैं। क्योंकि ये समय किसी के लिए कभी रुकता नहीं है। इसका पहिया हमेशा घूमता ही रहता है। दुनिया और लोग आपको आपके बड़े बड़े बंगलों और बेहद आलीशान ज़िन्दगी के लिए नहीं बल्कि आपने अपनी ज़िंदगी में क्या किया उसके लिए याद रखेंगे। हो सकता है कभी आपके बारे में किसी को कुछ लिखने को भी प्रेरित करें जैसे आज मैं मेरे गुरु के लिए लिख रहा हूँ।
मेने स्वयं से एक प्रश्न किया कि अगर मेने उनसे शिक्षा नहीं ली होती तो क्या मुझे उनसे इतना लगाव होता? क्या मुझे भारत के सबसे अमीर आदमी से इससे 100 गुना भी कम लगाव है? उत्तर है नहीं मुझे उस अमीर व्यक्ति से कोई लगाव नहीं है। हमारे ही देश में एक व्यक्ति अमीरी के नए आयाम रचकर दुनिया से चला गया और आज उसका कोई नामलेवा भी नहीं है।
उसके अपने बेटे उसकी छोड़ी हुई दौलत के लिए अदालत तक गए और आज एक दूसरे की शक्ल तक देखने को तैयार नहीं होते। आज अमीरी में उस व्यक्ति की जगह उसके बेटे ने ले ली कल को इसके बाद वो जगह कोई और ले लेगा लेकिन जाने के बाद कोई उसको उसकी अमीरी के लिए याद नहीं करेगा और अगर करेगा भी तो सिर्फ किये गए कार्यों के लिए चाहे वो अच्छे हों या बुरे।
कुछ वक्त पहले तक मुझे भी यही लगता था कि एक बेहतर ज़िन्दगी ही सब कुछ है बहुत सारे पैसे, एक आलीशान घर, गाड़ी, ब्रांडेड कपड़े-जूते, बेहतर लाइफस्टाइल यही सब कुछ है, लेकिन अब एहसास होता है कि ये ज़रूरतें तो हैं लेकिन ज़िन्दगी नहीं है। ज़िन्दगी आपका परिवार है आपके दोस्त हैं आपके अपने हैं जिनके साथ रहकर आप वो लम्हे जी सकते हैं जिन लम्हों में असली ज़िन्दगी छुपी होगी। उन लम्हों को जीने के लिए आपको किसी बंगले और बड़े महल की ज़रूरत नहीं है वो चिलचिलाती धूप में रेगिस्तान में टहलकर या बरसात में हरी घास पर बैठकर भी जिये जा सकते हैं।
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इस विलासिता वाले दौर में, हम सब पैसे कमाने को कामयाबी मानकर एक अंधी दौड़ में भाग रहे हैं और अपनी कभी न पूरी होने वाली ख्वाहिशों के लिए दिन रात दौड़ रहे हैं। जिसमें जीतने के लिए हम न जाने कितने रिश्तों और कितने अपनों को रौंदते हुए आगे निकल जाते हैं न सेहत का ख़याल न किसी की कोई फिक्र।
जब तक हमें ये एहसास होता है कि हम जीत गए तब तक हमारे पास इनाम में रह जाता है वही झुर्रियों वाला चेहरा और वही बूढ़ा शरीर और उसपर लटका हुआ माँस।
कितने हमारे अपने जिनके बिना हमारी ज़िंदगी हमें अधूरी लगती थी उनको ज़रा से लालच में खुद से दूर कर दिया।
अपने अहंकार और झूठी ईगो के चक्कर में हमने अपने हाथों से ही उन रिश्तों का गला घोंट दिया। बचपन में जिन भाइयों, बहनों, दोस्तों और अपनों से दिन रात लड़कर हम एक हो जाते थे आज छोटी छोटी सी बातों से पूरी ज़िंदगी के लिए दूर हो जाते हैं।अगर बड़े होकर और समझदार बनकर हम इतने अहंकारी हो जाते हैं तो हम नासमझ ही बेहतर थे।
अगर आपने ये ब्लॉग पूरा पढ़ा है तो मुझे यकीन है कि आपकी अपनी ज़िंदगी भी आपकी आंखों के सामने ज़रूर आयी होगी तो फिर आइए कोशिश करते हैं,
अगर हमारे भी कुछ रिश्ते टूटे हैं,
गर कुछ अपने पीछे छूटे हैं,
उन टूटे हुए रिश्तों को जोड़ने की,
ज़िन्दगी के रास्ते को मोड़ने की।
मैं नहीं मानता कि ज़िन्दगी में कोई यूटर्न नहीं है आप वापस आइए जो रिश्ते जो ख्वाहिशें और जो आपके अपने पीछे छूट गए हैं किसी से माफ़ी मांगिये किसी को माफ कर दीजिए और उनको अपने साथ लीजिए मुझे यकीन है ज़िन्दगी बहुत ख़ूबसूरत हो जाएगी। आइए हम उन अधूरी ख्वाहिशों को पूरा करते हैं और ज़िन्दगी को एक बार फिर से ज़िन्दगी बनाते हैं।